श्रीबिहारी रामलीला की शुरुआत अयोध्या की मंडली बुलाकर की गई थी। यह सिलसिला 1929 तक चला। दशहरे से पहले बाहर की मंडली आती और मंदिर के सामने रामलीला का मंचन करती। 1930 में पहली बार स्थानीय कलाकारों ने रामलीला का मंचन किया। तत्कालीन महंत स्व. बिहारी प्रसादजी ने शहर की दो नाकट कंपनियों के कलाकारों को इसके लिए तैयार किया था। धीरे-धीरे जिले के अन्य कलाकार भी बिहारी रामलीला से जुड़ गए। 80 व 90 के दशक में रामलीला अपने चरमोत्कर्स पर होता था।
50-60 के दशक में बाहरी कलाकारों की प्रतिस्पर्धा भी झेलनी पड़ी। नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन डॉ. लालता खरे ने बिहारी चौक की बजाय सुभाष पार्क में रामलीला करने का आग्रह किया था। लेकिन, रामलीला समाज के पदाधिकारियों ने कहा कि सुभाष पार्क आरक्षित करा दिया जाए तो यह संभव हो जाएगा। दोनों पक्षों में बात नहीं बनी। तब डॉ. खरे ने ग्वालियर से एक मंडली बुलाई और सुभाष पार्क में रामलीला शुरू करा दी थी। 1958 से श्री बिहारी रामलीला सुभाष पार्क होने लगी। तत्कालीन विस अध्यक्ष शिवानंद ने रामनाटोला का मैदान आरक्षित करा दिया।
मुस्लिम बंधु बुक्कू मास्टर व छोटेलाल साइकिल वाले हमेशा चर्चा में रहे। एक हरमोनियम तो दूसरे तबले पर संगत देते थे। कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष भुवनेश्वर शर्मा भी अभिनय करते थे। भाजपा जिलाध्यक्ष नरेंद्र त्रिपाठी नारद, को-ऑपरेटिव बैंक के मैनेजर रमाकांत पटेल मेघनाथ व सुमंत की भूमिका में नजर आते हैं।