सतना-बेला, सतना-बमीठा, सतना-चित्रकूट, एनएच-7 चौड़ीकरण सहित कई प्रोजेक्ट अधूरे हैं। सतना को स्मार्ट सिटी में शामिल किया। मैहर और चित्रकूट को मिनी स्मार्ट सिटी बनाने का प्रोजेक्ट भी संतोषजनक गति से आगे नहीं बढ़ सका। सतना नदी पर ओवरब्रिज का काम पूरा हुआ, मैहर बायपास को विस चुनाव से पहले शुरू कर दिया गया। सेमरिया चौराहे के फ्लाइओवर का काम लोकसभा चुनाव की आचार संहिता से पहले खत्म करना, चुनौती बना हुआ है। रेल विद्युतीकरण का काम विलंब चल रहा, सतना-पन्ना रेलखंड के लिए नींव के पत्थर दो साल पहले रखे गए।
सिंह का 2009 के बाद से लगातार राजनीतिक कद बढ़ा। पार्टी ने उन्हें प्रदेश मंत्री बनाया। २०१४ के लोकसभा चुनाव बाद केंद्र में सांसद को कई जिम्मेदारियां दी गईं। विषय अनुमान समिति, रेलवे वित्त व्यवस्था, पंचायती राज, अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग कल्याण संबंधी समिति, अध्यक्ष भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास विधेयक, उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार पर संयुक्त समिति में शामिल किया। सांसद, राज्य व केंद्र में भाजपा की सरकार होने का सतना को ज्यादा फायदा नहीं मिला।
सिंह की संसद में 86 फीसदी उपस्थिति रही। लोकसभा में क्षेत्रीय मुद्दे भी उठाए। सांसद ने किसानों को मुआवजा, रेल स्टॉपेज, सतना के स्वास्थ्य को लेकर, मंदाकिनी के प्रदूषण का मुद्दा उठाया। वे 321 दिन चले सदन में 279 दिन मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने 152 बहस में हिस्सा लिया। 384 सवाल पूछे।
केंद्रीय नेतृत्व ने सांसदों के कार्य और लोकप्रियता की स्थिति जानने एक सर्वे कराया है। इसमें सिंह की स्थिति न बहुत अच्छी और न ही बहुत खराब मिली है। माना गया है कि यहां का प्रत्याशी या तो पिछड़ा अथवा ब्राह्मण वर्ग से ही बेहतर होगा। ऐसे में भाजपा मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी के नाम पर भी विचार कर सकती है।
विरोधियों ने सांसद गणेश सिंह पर समय-समय पर परिवारवाद के आरोप भी लगाए, हालांकि जनता के बीच यह कभी बड़ा मुद्दा नहीं बना। उनके पिता कमलभान सिंह पुस्तैनी गांव खम्हरिया में खेती करते हैं। छोटे भाई उमेश प्रताप सिंह जिला पंचायत सदस्य और वन स्थायी समिति के सभापति हैं। उमेश की पत्नी सुधा पटेल सतना जिला पंचायत में अध्यक्ष हैं।