परसाई ने समाज को बहुत ही बारीकी से समझा। उन्होंने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा। लेखनी के माध्यम से उनकी समस्याओं को उजागर किया। उनकी भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन रहा। परसाई ने अपने व्यंग्यों द्वारा मौजूदा व्यवस्था, समाज और सत्ता सभी पर निशाना साधा।
उनकी रचनाएं ठिठुरता हुआ गणतंत्र, कृति आवारा भीड़ के खतरे, पैसे का खेल, विकलांग श्रद्धा का दौर, एक निठल्ले की डायरी रचना श्रेष्ठ व्यंग्य हैं। ये सभी रचनाएं युवाओं को सकारात्मक दिशा में बढऩे के लिए प्रेरित करती हैं।
– चंदा मांगने वाले और देने वाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेने वाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देने वाला भी मांगने वाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं।
– समस्याओं को इस देश में झाडफ़ूंक, टोना-टोटका से हल किया जाता है। साम्प्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया। हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई।
– अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं।
– बीमारियां बहुत देखी हैं। निमोनिया, कालरा, कैंसर जिनसे लोग मरते हैं। मगर यह टैक्स की कैसी बीमारी है।
रविशंकर चतुर्वेदी, हास्य व्यंग्यकार
डॉ. राजेंद्र द्विवेदी, प्राध्यापक, डिग्री कॉलेज