एक माह तक चित्रकूट के चौरासी कोस के परिधि में आने वाले पौराणिक स्थलों से गुजरती है। हर स्थल पर रात्रि विश्राम कर पुन: सुबह साधु-संतों का जत्था अगले पड़ाव के लिए जय श्रीराम का उद्घोष करते निकल पड़ता है। चित्रकूट स्थित स्वामी मत्स्यगजेंद्रनाथ महराज का पूजन कर इसका समापन किया जाता है। परिक्रमा के हर पड़ाव में रूद्राभिषेक होता है। शाम को भंडारा कर प्रसाद वितरण होता है। मार्कंडेय आश्रम में रात्रि विश्राम के बाद शनिवार को पुष्करणी सरोवर, विराध कुंड होते हुए टिकरिया के लिए प्रस्थान किया।
खास-खास
आश्रम: जनप्रतिनिधि पर्यटन हब के रूप में विकसित करने का दावा करते हैं, लेकिन मार्कंडेय आश्रम बदहाली का शिकार है। नेता हर बार इस मुद्दे पर वोट लेकर चुनाव जीत जाते हैं, लेकिन आश्रम के नाम एक रुपए खर्च नहीं करते। उनकी अनदेखी के कारण यहां पानी तक के इंतजाम नहीं है। श्रद्धालुओं को परेशान होना पड़ रहा है।
पड़ाव: परिक्रमा का प्रत्येक पड़ाव 12 से 15 किमी को होता है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, मप्र, हरिद्वार ऋषिकेश व मथुरा सहित देशभर से संत-धर्माचार्य शामिल हैं। चिकित्सा दल: साधु-संतों के प्राथमिक उपचार के लिए परिक्रमा के साथ डॉक्टर भी रहते हैं। ताकि परिक्रमार्थियों को समस्याएं होने पर इलाज मिल सके।
रूद्राभिषेक: परिक्रमा के हर पड़ाव पर वैदिक विद्वानों द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है। आश्रम में क्षेत्रवासियों ने रुद्राभिषेक कर पुण्यलाभ अर्जित किया। साधना: परिक्रमा में आए साधु संत विभिन्न प्रकार की साधनाओं में विलीन दिखे। कोई पंचाग्नि ताप कर तो कोई स्त्रोतों का पाठ कर रहा है। कोइ यज्ञ कर भक्ति में मतवाल है।