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संवाद सेतु

Samvad Setu : कभी रायबरेली की लाइफलाइन थी आईटीआई, अब खुद मांग रही लाइफ सपोर्ट

– Samvad Setu – पत्रिका का संवाद सेतु कार्यक्रम जनता की बात सरकार तक और सरकार की बात जनता तक पहुंचाने का एक माध्यम है। रायबरेली में 12 दिसंबर, रविवार को संवाद सेतु कार्यक्रम को पत्रिका ग्रुप के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी संबोधित करेंगे।

Dec 12, 2021 / 01:52 pm

Sanjay Kumar Srivastava

Samvad Setu : कभी रायबरेली की लाइफलाइन थी आईटीआई, अब खुद मांग रही लाइफ सपोर्ट

Samvad Setu : कभी रायबरेली की लाइफलाइन थी आईटीआई, अब खुद मांग रही लाइफ सपोर्ट

रायबरेली. (शिव सिंह) जब कभी इंदिरा गांधी रायबरेली आती तो वे किसी न किसी इंडस्ट्री की गिफ्ट की यहां के लोगों को दीं। आईटीआई ऐसा ही एक उपहार था, जिसने रायरबरेली के विकास में चार चांद लगा दिए और यहां की लाइफलाइन बन गयी लेकिन अब इस बड़े संस्थान को ही लाइफ सपोर्ट की दरकार है।
यह कहना है कि आईटीआई के कर्मचारी आशीष सिंह का। आशीष आईटीआई के स्वर्णिम दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि एक जमाना था जब आईटीआई के कर्मचारियों को बोनस और सेलरी इतनी अधिक थी कि रायबरेली शहर के बांजार में शेयर बाजार जैसा उछाल आ जाता था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विशेष पहल पर इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्री (आईटीआई) की नींव 1973 में रखी गई और आपातकाल से ठीक पहले 1975 में इसका लोकार्पण किया। एक समय था जब देश में भर इस संस्थान ने दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी। रायबरेली के हजारों लोगों को सीधे रोजगार मिला जबकि लाखों लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर मिले। एक समय यहां 6600 नियमित कर्मचारी थे जबकि दैनिक वेतन कर्मचारियों की संख्या डेढ़ हजार से अधिक थी। यहीं के कर्मचारी एचएन सिंह बताते हैं कि निजी और सरकारी क्षेत्र में सबसे अधिक वेतन व सुविधाएं आईटीआई रायबरेली के कर्मचारियों को मिलती थीं। कई लोग निजी कंपनियों की नौकरी छोड़कर यहां ज्वाइन कर लिया।
350 एकड़ में फैले इस औद्योगिक संस्थान में उत्पादन में कमी, प्रबंधन में भ्रष्टाचार समेत कई वजहों से संस्थान में साल दर साल घाटा होता गया और प्रबंधन ने स्थिति सुधारने के लिए अपने उत्पादन, ग्राहक बढ़ाने के बजाय कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी। इनके वेतन और सुविधाओं में कमी कर दी । वर्तमान में हालत यह हो गई है कि यहां कुल 550 कर्मचारी हैं और इनमें एक बड़ी संख्या आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की है।
खत्म की जा रहीं सुविधाएं

आईटीआई लिमिटेड श्रमिक रायबरेली के महासचिव आशीष सिंह का कहना है कि प्रबंधन ने अपनी कमियां छुपाने के लिए एक-एक कर कर्मचारियों की सुविधाएं कम करता जा रहा है। यहां के कर्मचारियों को अभी वर्ष 1997 का वेतन मिल रहा है जबकि वर्ष 2007 व 2017 में नया वेतनमान देय था लेकिन वर्ष 2021 में भी इसके मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। कर्मचारियों के सेवा सुरक्षा व स्वास्थ्य सुरक्षा के भी भरोसेमंद उपाय नहीं रह गए हैं। कनवेंस के नाम पर प्रबंधन कर्मचारियों को महज 750 रुपए दे रहा है।
कर्मचारी के दो बेटों की इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई के लिए प्रति माह 200 रुपए संस्थान दे रहा है जबकि पहले यह राशि मात्र 35 रुपए ही थी। अब जाकर बढ़कर 200 रुपए हो पाई है। परिसर में पहले केंद्रीय विद्यालय संचालित था लेकिन अब बंद हो चुका है। डिस्पेंसरी में महज एक डॉक्टर है। जरूरी सुविधाएं तक नदारद हैं और कॉलोनी की सुरक्षा व्यवस्था भी मानकों के अनुरूप नहीं दिखाई पड़ती है।
रिटायरमेंट कर्मियों को समय से भुगतान नहीं

आईटीआई की सेवा करके रिटायर हुए कर्मचारियों को समय से भुगतान नहीं किया जा रहा है। नवंबर २०१६ से जरूरी मदों के भुगतान नहीं किए जा रहे हैं। इससे कम से कम 400 लोग प्रभावित हैं।
अब आगे क्या

आईटीआई रायबरेली की तरह ही आईटीआई नैनी, मनकापुर, बेंगलुरु, पालघाट और श्रीनगर में भी यूनिट्स हैं लेकिन इनमें से सबसे खराब स्थिति आईटीआई रायबरेली की ही है। अब इसे पुन: पटरी पर लाने के उपायों पर कर्मचारी नेता आशीष सिंह का कहा है कि प्रबंधन को अपनी नीति सही करनी पड़ेगी। कम योग्य लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया है,इन्हें हटाकर काबिल लोगों को जिम्मेदारी देनी होगी और निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा करते हुए बेहतर उत्पादन देना होगा।
Samvad Setu : जर्जर सड़कें और जगह-जगह गड्ढे बन रहे शहर की पहचान

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युवाओं की आस टूटी

आईटीआई रायबरेली की इस हालत को देख कर सबसे अधिक अधिक दुखी यहां के युवा हैं। इन्हें लगता था कि अगर यह संस्थान प्रगति करता तो रायबरेली के युवाओं को बाहर नहीं जाना पड़ता। यहीं वे बेहतर जॉब कर सकते थे। आज यहां स्थिति यह है कि बड़ी संख्या में लोग अन्य प्रदेशों में रोजगार की तलाश में जाते हैं,क्योंकि यहां उद्योगधंधों में पहले की तरह न तो रोजगार है और न ही पुराना वैभव।

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