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Gandhi jayanti special- गांधी की सभाओं में टिकट खरीदकर जाते थे युवा

– गांधी जयंती पर विशेष- पहले से रिवर्ज करनी होती थी सीट

सागरOct 02, 2022 / 01:30 am

दीपेश तिवारी

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सागर@बृजेश कुमार तिवारी

आजादी से पहले गांधीजी को लेकर दीवानगी ऐसी थी कि लोग उनके भाषणों को सुनने के लिए सभाओं में टिकट खरीदकर जाते थे। इन सभाओं में टिकट दर भी स्थान के आधार पर तय होती थी। मंच और मंच के सामने बैठने के लिए वीआइपी लोगों के लिए टिकट दर अलग-अलग रहती थी। आम लोगों के लिए सभा में आने का कोई शुल्क नहीं था।

एक से दस रुपए तक टिकट
2 दिसंबर 1933 को सागर के तिलकगंज गल्ला बाजार में गांधीजी की आमसभा हुई थी। इस सभा में दस हजार लोगों के आने का इंतजाम था। सभा में खास लोगों के लिए एक से लेकर दस रुपए तक का टिकट निर्धारित किया गया था। दस रुपए का टिकट लेकर मंच पर गांधीजी के साथ बैठने का मौका मिलता था, जबकि बाकी के टिकटों से मंच के सामने बैठकर नजदीकी से गांधीजी को देखा और सुना जा सकता था। आम लोग लाउडस्पीकर से भाषण सुन सकते थे।

देशभर से आते थे लोग
गांधीजी की सभाओं का इतना के्रज था कि देशभर से लोग उनको सुनने आते थे और टिकट भी खरीदते थे। अधिकतर लोग पहले से ही सभा में अपनी सीट रिजर्व करा लेते थे। मांगपत्र और ज्ञापन देने वाली समितियों को भी टिकट लेना होता था, जो गांधीजी से मिलकर अपनी बात कह सकते थे। उस समय प्रेस के लिए अलग से पास की व्यवस्था की जाती थी। सागर में सभा के टिकट का वितरण सरस्वती वाचनालय से किया गया था। वहीं सभा स्थल पर भी टिकट देने की व्यवस्था रहती थी।

आंदोलन के खर्च में काम आता था पैसा
महात्मा गांंधी की सभाओं में टिकट से मिली राशि हरिजन सभा और आजादी के आंदोलन में खर्च की जाती थी। आंदोलन में जेल गए कांगे्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के परिवारों की जिम्मेदारी भी कांग्रेस उठाती थी। इस राशि से इन परिवारों के राशन-पानी, बच्चों की स्कूल फीस, किताबें आदि का खर्च उठाया जाता था।

नहीं पहुंचती थी आवाज
गांधीजी की सभाओं में तय संख्या से कहीं ज्यादा भीड़ होती थी। सभा का पता चलने पर वहां के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ता था। भीड़ इतनी होती थी कि लाउडस्पीकर की आवाज भी पीछे तक साफ नहीं पहुंचती थी।

आजादी के आंदोलन के समय गांधीजी के प्रति दीवानगी ऐसी थे कि लोग उनकी एक झलक पाने के लिए बेताव रहते थे। सभाओं में अधिकतर लोग टिकट खरीदकर शामिल होते थे। इस राशि का उपयोग जनहित के कामों में किया जाता था। सभाओं में देशभर के लोग शामिल होते थे।
– चतुर्भुज सिंह राजपूत, कानूनविद और स्वतंत्रता सेनानी

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