प्रत्येक वस्तु अपना एक स्वतंत्र अहमियत रखती है, जिसे शास्त्री भाषा में धर्म बोलते हैं। एक स्वभाव रूप धर्म होता है, एक साधन रूप धर्म होता है, एक साध्य रूप धर्म होता है और एक मजबूरी का धर्म होता है। अपन मजबूरी वाले धर्म में जीते है और वो तो धर्म है ही नहीं।
सागर•Nov 07, 2024 / 11:48 am•
रेशु जैन
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Hindi News / Sagar / मजबूरी वाले धर्म को हम धर्म नहीं : सुधा सागर महाराज