जानकारी के अनुसार नौरादेही अभयारण्य में अफ्रीकन चीतों को लाने का मसौदा करीब छह-आठ साल पहले तैयार किया गया था। इसके लिए करीब तीन हजार करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसमें अभयारण्य के बीच बसे गांवों को विस्थापन करने पर व्यय सहित अन्य व्यवस्थाएं बनाने के बिंदु शामिल थे। प्रस्ताव तैयार करते समय तो 23 गांव को विस्थापित करने का प्लान किया था, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या 37 पर पहुंच गई है और अब तक 10 गांवों का पूरी तरह से विस्थापन भी हो चुका है।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार नौरादेही में बाघ, चीतों का बसेरा बनाने को लेकर करीब 15 से 18 वाइल्डलाइफ वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। इसमें जलवायु परिवर्तन के असर, बायोडायवर्सिटी को लेकर समय-समय पर फीडबैक देते रहते हैं।
नौरादेही अभयारण्य में बीते कुछ सालों में वन व वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर कई इंतजाम किए गए हैं। यही कारण है कि यहां पर बाघों का बसेरा बन सका है। सेंचुरी की टीम ने यहां पर कैमरे फिट किए हैं, तो शिकारियों और वन माफियाओं का पर सिकंजा कसने डॉग स्कावड काम कर रही है। इतना ही नहीं वन क्षेत्र में सतत निगरानी के लिए यहां पर ड्रोन का उपयोग होगा।
हमें फिलहाल विटनेरी हास्पिटल की जरूरत है इसको लेकर करीब तीन-चार माह पहले प्रस्ताव भी भेज दिया गया है। अफ्रीकन चीतों के लिए वन विभाग की टीम और सेंचुरी पूरी तरह तैयार हैं। सुरक्षा से लेकर चीतों के रहने के लिए करीब ४०० वर्ग किमी घांस का मैदान भी खाली हो चुका है।
डॉ. अंकुर अवधिया, डीएफओ, नौरादेही अभयारण्य