बीमा कंपनी को सही डीटेल दें
– इंश्योरेंस कॉन्ट्रैक्ट भरोसे पर चलता है। अगर इंश्योरेंस कंपनी को पता चलता है कि पॉलिसीहोल्डर ने फॉर्म में गलत जानकारी दी है तो कॉन्ट्रैक्ट खारिज हो जाएगा। जो लोग सिगरेट-शराब नहीं पीते, उनके लिए प्रीमियम कम होता है। वहीं, अगर आप स्मोक और ड्रिंक करते हैं तो भूलकर गलत जानकारी न दें। इन आदतों या बीमारियों को बीमा कंपनी से छिपाने पर बाद में क्लेम खारिज हो सकता है। स्मोक और ड्रिंक करते हैं तो उसके बारे में बीमा कंपनी को जरूर बताएं।
– फैमिली में किसी को डायबिटीज है तो उसकी जानकारी भी बीमा कंपनी को दें। इससे प्रीमियम कुछ हजार रुपए बढ़ सकता है लेकिन नॉमिनी को क्लेम में दिक्कत नहीं आएगी।
– टर्म प्लान हाई वैल्यू कवर होते हैं, इसलिए कंपनियां पॉलिसी जारी करने से पहले कई मेडिकल टेस्ट कराती हैं। हालांकि कुछ मामलों में कंपनी इस पर जोर नहीं देती हैं, बस अच्छे स्वास्थ्य का घोषणापत्र मांगती हैं। इसमें आपको नुकसान हो सकता है। पॉलिसी होल्डर के असमय निधन पर कंपनी यह दिखाने की कोशिश करती है कि पॉलिसी लेते वक्त झूठ बोला था या पुरानी बीमारी छिपाई थी। अगर पॉलिसी लेने वाला व्यक्ति मेडिकल टेस्ट कराता है तो सारी जिम्मेदारी कंपनी और मेडिकल टेस्ट करने वाले डॉक्टर की होती है। वे नॉमिनी के इंश्योरेंस क्लेम को चुनौती नहीं दे सकेंगे।