प्रसूताओं की मौत में ये गैप निकले-
-सरकारी व निजी अस्पतालों में ब्लड प्रेशर की दवाइयों में अंतर। -निजी व सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स में कम्युनिकेशन गैप। -दवाईयों का ब्यौरा मरीज के साथ में न रखना। -वेंटीलेटर के मरीज को सामान्य एम्बुलेंस में भेजना। -लेडी डॉक्टर्स का अभाव। -सरकारी अस्पतालों की गाइडलाइन का पालन न करना।
एक दूसरे का नंबर रखें और बात करें अस्पताल प्रबंधन-
बैठक में चर्चा हुई कि मालथौन से गंभीर हालत में आई महिला पहले बीएमसी गई और वहा कैजुअल्टी से वापिस चैतन्य हॉस्पिटल गई। मरीज की हालत खराब थी और ब्लड प्रेशर की वजह से उसकी मौत हो गई। पता चला कि मरीज मालथौन में हुई दवाओं का पर्चा वहीं भूल गई, बीएमसी में क्या इलाज हुआ इसकी जानकारी एक दूसरे अस्पतालों से पूछने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। निर्देश दिए गए कि सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल एक दूसरे के नंबर रखें, प्रसूता आएं तो उनकी हिस्ट्री, इलाज पूछे, संबंधित डॉक्टर्स से भी जानकारी लें।
पन्ना के जिला अस्पताल में भी लेडी डॉक्टर नहीं-
बैठक में सामने आया कि पन्ना जिला अस्पताल में लेडी डॉक्टर्स ही नहीं है। यहां 5 ब्लॉक में सिर्फ एक लेडी डॉक्टर हैं। यहां क्षेत्रीय संचालक ने क्लास वन अधिकारी डॉक्टर को ड्यूटी करने के निर्देश दिए हैं।
अप्रेल में हुई 11 प्रसूताओं के मामले-
जिला ग्रामीण शहर सागर 3 0 दमोह 0 1 पन्ना 2 0 छतरपुर 4 1 टीकमगढ़ 0 0-डॉ. अरूणा कुमार मैडम ने संभाग में प्रदेश स्तरीय बैठक ली और संभाग के 11 केस पर चर्चा की। अच्छी बात ये रही कि सभी केस से संबंधित स्वास्थ्य अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे। यहां तक की निजी अस्पतालों के लोग भी बैठक में थे, सभी ने मातृ मृत्यु दर कम करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए। हमारे यहां मातृ मृत्यु का रेशियो कम है फिर भी हमारी कोशिशें जारी हैं कि इसको और कम किया जाए। डॉ. ज्योति चौहान, क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं।