ऐसे में इस वर्ष भी तुलसीदास जयंती रविवार, 15 अगस्त 2021 को मनाई जाएगी। इस बार इस दिन स्वतंत्रता दिवस होने के साथ ही सुबह 09:51 बजे तक ही सप्तमी रहने के चलते इसके बाद अष्टमी (मासिक दुर्गाष्टमी) लग जाएगी।
अपने सांसारिक जीवन से तुलसीदास जी विरक्त संत थे। भगवान श्रीराम की उनकी रचनाओं पर विशेष कृपा रही है। गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम से भेंट करवाने में सबसे बड़ा श्रय रामभक्त हनुमान जी को देते हैं। तुलसीदास जी श्रीराम से हनुमान जी की कृपा से ही भेंट कर पाए थे।
तुलसीदास जी: जीवन परिचय
माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म ब्रह्मण परिवार में हुआ। जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था उनके मुख से राम नाम की ध्वनि निकली। वहीं जन्म से ही इनके मुख में दांत दिखायी दे रहे थे। जन्म के चंद दिनों बाद ही तुलसीदास जी की माता का देहांत हो गया। ऐसे में तुलसीदास जी को अभागा मानते हुए पिता ने भी उन्हें एक दासी को सौंप दिया। जीवन को संघर्षशील समझते हुए तुलसीदास जी राम भक्ति में लीन होने लगे।
कुछ समय बात तुलसीदास जी की रत्नावली से शादी हो गई। लेकिन, उस समय गौना नहीं हुआ था अत: कुछ समय के लिये तुलसीदास जी काशी चले गये और वहां वेद-वेदांग के अध्ययन के लिए शेष-सनातन जी के पास रहने लगे।
काशी में एक दिन अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी और वे व्याकुल होने लगे। जब नहीं रहा गया तो गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये। लेकिन,गौना नहीं होने के कारण पत्नी रत्नावली तो मायके में ही थी ऐसे में तुलसीराम ने भयंकर अंधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की और एक सांप को रस्सी समझकर उस पर चढ़ते हुए अपनी पत्नी के पास जा पहुंचे।
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रत्नावली इतनी रात में अपने पति को अकेले आया देख चिंतित हो गयी। और उसने लोक-लाज के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने खुद के बनाए एक दोहे के माध्यम से जो कहा उसने ही तुलसीराम को तुलसीदास जी बना दिया। रत्नावली का दोहा:
अस्थिचर्म मय-देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो-होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
यह दोहा सुनते ही तुलसीदास जी उसी समय पत्नी को वहीं उसके पिता के घर छोड़ वापस अपने गांव राजापुर लौट गए। राजापुर में अपने घर जाकर जब उन्हें यह पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता भी नहीं रहे और पूरा घर नष्ट हो चुका है, तो उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने पिता जी का विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध किया और गांव के लोगों को वहीं श्रीराम की कथा सुनाने लगे।
तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं
अपने जीवन काल में तुलसीदास जी ने 16 रचनाएं रची है। जिनमें से मुख्य तौर पर ‘गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, ‘हनुमान बाहुक’ इन सभी रचनाओं ने तुलसीदास जी को कविराज की उपाधि दे डाली। जबकि “रामचरितमानस” ने तो तुलसीदास जी का जीवन ही बदल दिया।
तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। इसी जन्म दिवस को लोग तुलसीदास जयंती के रूप में मनाते हैं। अपने जीवन में तुलसीदास जी राम भक्ति के अलावा किसी अन्य को स्थान नहीं दिया।
मान्यता के अनुसार एक बार हनुमान जी के कहने पर चित्रकूट पहुंचे तुलसीदास ने सबसे पहले नदी में स्नान किया और कदमगिरि कि परिक्रमा करने लगे तभी उन्हें दो सुंदर राजकुमार दिखे, जिनमें से एक गौर वर्ण और दूसरा श्याम वर्ण का था, और वे दोनों अत्यंत सुंदर घोड़े पर सवार थे।
उन्हें देखते ही तुलसीदास जी ने उन्हें देखा और उनके मन में सवाल उठा कि इतने सुंदर राजकुमार चित्रकूट में क्या कर रहे हैं और कुछ ही देर बाद वे सुंदर राजकुमार उनकी आंखों से ओझल हो गए तब हनुमान जी उनके पास आए और पूछा कि क्या आपको प्रभु श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण के दर्शन हुए? तुलसीदास जी के मना करने पर हनुमान ने बताया कि अभी जो अश्व पर सवार होकर दो राजकुमार गए वहीं प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण थे।
प्रभु के ना पहचान पाने का तुलसीदास जी को अत्यधिक दुख हुआ और वह हनुमान जी से दोबारा प्रभु के दर्शन करने के लिए कहने लगे।
ऐसे जब तुलसीदास नदी चित्रकूट के घाट पर अगले दिन बैठकर चंदन घिस रहे थे कि तभी एक बालक चंदन लगवाने उनके पास आया और कहा बाबा आपने तो चंदन बहुत अच्छा घिसा है थोड़ा हमें भी लगा दो। तुलसीदास श्रीराम को इस समय भी नहीं पहचान पाए । हनुमान जी को जैसे ही इसका अहसास हुए कि कहीं तुलसीदास इस बार भी गलती ना कर दें, तब वो एक तोते के रूप में आए तो बहुत ही करुणरस में गाने लगे कि
‘चित्रकूट के-घाट पर, भई संतन-की-भीर, तुलसीदास चंदन-घिसैं ,तिलक-करें रघुवीर’
इतना सुनते ही तुलसीदास तुरंत चंदन को छोड़कर के प्रभु के पैरों में गिर गए और जब अपनी आंखों को उठाया तो देखा कि प्रभु श्रीराम साक्षात के सामने अपने असली रूप में खड़े थे।
प्रभु श्री राम को अपने सामने देख तुलसीदास की आंखों से आंसू बह निकले, इसी समय भगवान श्री राम ने अपने हाथों से चंदन को उठाया और तुलसीदास के माथे पर लगा दिया और हनुमान जी की कथनी को चरितार्थ कर दिया। तुलसीदास चंदन घिसैं तिलक करें रघुवीर।