तालवृक्ष में है 7 फीट ऊंचा शिवलिंग…धनुर्धारी अर्जुन ने की थी स्थापना
जिला मुख्यालय से करीब 42 किलोमीटर दूर तालवृक्ष धाम है। सरिस्का वनक्षेत्र के नजदीक होने के कारण यहां अरावली क्षेत्र की प्राकृतिक छटा, ताड़ के लम्बे-लम्बे पेड़ तथा जीव-जन्तु विचरण करते हैं। शाम के समय मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि, पक्षियों का कलरव तथा बंदरों की उछल कूद, बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती […]
जिला मुख्यालय से करीब 42 किलोमीटर दूर तालवृक्ष धाम है। सरिस्का वनक्षेत्र के नजदीक होने के कारण यहां अरावली क्षेत्र की प्राकृतिक छटा, ताड़ के लम्बे-लम्बे पेड़ तथा जीव-जन्तु विचरण करते हैं। शाम के समय मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि, पक्षियों का कलरव तथा बंदरों की उछल कूद, बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक दोनों रूप से इस स्थान का विशेष महत्व है।
कहा जाता है कि महाभारत काल में अर्जुन ने इसकी स्थापना की थी। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय विराट नगर और सरिस्का में गुजारा था। उसी समय ताल वृक्ष में पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। यहीं अर्जुन ने अपने आराध्य शिव भगवान की पूजा की थी, उस समय अर्जुन ने 7 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना की थी।
इस स्थान पर ताल (अर्जुन) व खजूर के वृक्ष बहुतायत में होने के कारण इसे तालवृक्ष कहा जाता है। तालवृक्ष में गंगा मंदिर भी है जो की अपने आप में अनूठा है। गंगा मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा यहां आमेर नरेश रामसिंह के शासन काल में बाबा पूर्ण दास ने कराई थी।
शिवरात्रि पर होता है विशेष जलाभिषेक
स्थानीय लोगों ने बताया कि तालवृक्ष में सात फीट ऊंची शिवलिंग है। यहां शनिवार, मंगलवार, पूर्णिमा, अमावस्या के दौरान बडी संख्या में लोग दर्शन व जलाभिषेक को पहुंचते है। शिवरात्रि व श्रावण मास में विशेष जलाभिषेक किया जाता है। यहां स्थापित शिवलिंग के पीछे अण्ड ज्योति जलती है।
तालवृक्ष में भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति भी थी जो की अष्टधातु से बनी हुई थी। चोर उस मूर्ति को चोरी कर ले गए। बाद में मूर्ति को कोलकाता के हवाई अड्डे से बरामद कर लिया गया। अब यह प्राचीन मूर्ति अलवर के पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में विराजित है। वहां प्रतिदिन उस मूर्ति की पूजा होती है।
मुख्य आकर्षक है गर्म-ठण्डे पानी के कुण्ड
तालवृक्ष के मुख्य आकर्षक गर्म-ठण्डे पानी के कुण्ड है। पहले यह कुण्ड कच्चे थे। नारायणपुर के तत्कालीन महाराज रामसिंह ने इनका जीर्णोद्धार करवाया था। कहते है यहां गर्म पानी के कुण्ड में स्नान करने से चर्म रोग दूर होता है। यहां पर्यटक और तीर्थयात्री दोनों ही डुबकी लगाने के लिए आते हैं। तालवृक्ष में राजपूतकालीन छतरियां भी हैं। इन पर मुगल शैली के चित्र बने थे, लेकिन सार-संभाल नहीं होने के कारण अब ये गिराउ हालत में है।