वहीं भगवान शिव को विशेष प्रिय होने के कारण सावन का प्रदोष अत्यंत विशेष माना जाता है। माना जाता है कि प्रदोष का यह व्रत करने से चंद्र दोष दूर होने के साथ ही भगवान शिव की भी विशेष कृपा बरसती है।
श्रावण गुरु प्रदोष 2021 के मुहूर्त
श्रावण, त्रयोदशी (कृष्ण पक्ष) का शुरु : गुरुवार,05 अगस्त: 05:09 PM से
श्रावण, त्रयोदशी (कृष्ण पक्ष) का सम्पन्न : शुक्रवार,06 अगस्त: 06:28 PM तक
प्रदोष काल :07:09 PM से रात 09:16 PM तक
प्रदोष व्रत सप्ताह के वार के तहत से अलग-अलग होता है और उसकी महत्वता भी अलग- अलग होती है। ऐसे में इस बार गुरुवार के दिन प्रदोष होने के कारण यह गुरु प्रदोष कहलाएगा।
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इस प्रदोष क्या करें खास:
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस प्रदोष के दौरान भगवान शिव से पहले माता पार्वती की पूजा करें, माना जाता है कि शिव से पहले देवी माता कि आरती करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं।
इसके अलावा इस बार गुरुवार का प्रदोष है और साप्ताहिक दिनों में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का माना जाता है, ऐसे में इस सावन के गुरु प्रदोष के दिन रामरक्षास्त्रोत का पाठ अत्यंत ही विशेष माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव राम को अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा से अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
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मान्यता के अनुसार गुरु प्रदोष में श्रीराम की पूजा से भगवान शिव बहुत जल्द प्रसन्न तो होते ही साथ साथ ही इसे करने वाले के सारे कष्टों का हरण करते हुए उसे मनचाहा वरदान तक प्रदान करते हैं।
इस दिन श्रीराम के अलावा श्रीकृष्ण का पूजन भी काफी खास माना जाता है।
पंडित शर्मा के अनुसार माना जाता है कि प्रदोष काल में की जानें वाली भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा घर में सुख और समृद्धि लाती है।
प्रदोष व्रत 2021: ये है पूजा-विधि
इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें। फिर भगवान शंकर के सामने पूजा या संभव हो तो व्रत की शपथ लें। इसके बाद घर के पूजा स्थल पर गंगाजल का छिडकाव करने के पश्चात शिव परिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। और उनके सामने घी का दीप प्रज्वलित करें। इस दिन शिव परिवार की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक करने के बाद उन्हें पुष्प समर्पित करें। इस दिन शिव परिवार की पूजा करें। जिसके बाद भगवान को भोग लगाएं। और अंत में भगवान शंकर की आरती के बाद उनका अधिक से अधिक ध्यान करें। इस दिन इस दिन शिव चालीस या शिवाष्टक का भी पाठ करना चाहिए।