ऋषि पंचमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सिताश्व नामक राजा ने ब्रह्माजी से पूछा कि- ‘पितामह, सबसे श्रेष्ठ और तुरंत फल देने वाला व्रत कौन सा है?’ तब ब्रह्मा जी ने बताया कि- ‘सभी व्रतों में उत्तम और पापों का नाश करने वाला ऋषि पंचमी का व्रत है। उन्होंने आगे कहा कि- ‘हे राजन! विदर्भ देश में एक उत्तक नाम का सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था जो कि बहुत पतिव्रता थी। ब्राह्मण के एक पुत्र और एक पुत्र थी। जब उसकी पुत्री विवाह के उपरांत विधवा हो गई तो दुखी ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुशीला अपनी पुत्री के साथ ही गंगा के किनारे पर एक कुटिया बनाकर रहने लगे। कुछ समय बाद एक दिन सोते समय ब्राह्मणी ने देखा कि उसकी बेटी के शरीर में कीड़े पड़ गए हैं। तब ब्राह्मण उत्तक को ध्यान लगाने पर पता चला कि उसकी बेटी पिछले जन्म में एक ब्राह्मण की पुत्री थी, लेकिन रजस्वला के दौरान वह पूजा के बर्तनों को छू लेती थी। साथ ही उसकी पुत्री ने कभी ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इस वजह से उसकी ये हालत हुई है। फिर ब्राह्मण के बताए अनुसार उसकी पुत्री ने इस जन्म में कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत और पूजन किया। इस व्रत को करने से उत्तक की बेटी के दोष दूर हो गए और उसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिला।’
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