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Maa Shailputri Ki Katha: नवरात्रि के पहले दिन पूजन के बाद अवश्य पढ़ें मां शैलपुत्री की ये कथा

Navratri 1st Day Katha: मान्यता है कि विधिवत मां शैलपुत्री की पूजा से जीवन में शांति और सुख-समृद्धि का वास होता है। वहीं मां शैलपुत्री के पूजन के पश्चात मंत्र जाप, आरती और कथा पढ़ना भी जरूरी माना गया है। तो आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की कथा…

Sep 26, 2022 / 02:40 pm

Tanya Paliwal

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Maa Shailputri Ki Katha: नवरात्रि के पहले दिन पूजन के बाद अवश्य पढ़ें मां शैलपुत्री की ये कथा

Maa Shailputri Vrat Katha In Hindi: शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ आज 26 सितंबर से हो गया है। आज से 9 दिनों तक नौ अलग-अलग देवियों की पूजा की जाएगी। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के पहले द‍िन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री माता को उमा, सती और हेमवती आदि नामों से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, माता के माथे पर चंद्रमा सुशोभ‍ित है और उन्हें सफेद रंग प्रिय है। इसलिए मां शैलपुत्री की पूजा में उन्हें सफेद रंग के ही वस्त्र, पुष्प, गाय का घी और मिठाई अर्पित करें। मान्यता है कि विधिवत मां शैलपुत्री की पूजा से जीवन में शांति और सुख-समृद्धि का वास होता है। वहीं मां शैलपुत्री के पूजन के पश्चात मंत्र जाप, आरती और कथा पढ़ना भी जरूरी माना गया है। तो आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की कथा…

मां शैलपुत्री की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ का आयोजन करने का सोचा तो उन्होंने सभी देवी-देवताओं को अपने यहां आने का निमंत्रण भेज दिया, लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव को नहीं बुलाया। देवी सती को लगा था कि उन्हें भी बुलावा भेजा जाएगा। परंतु उनके यहां यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं आया। फिर भी देवी सती को उस यज्ञ में जाने का मन हुआ, लेकिन शिवजी ने उन्हें मना कर दिया। शिवजी ने सती को बोला कि अभी उनके पास यज्ञ में जाने के लिए कोई निमंत्रण नहीं आया है इसलिए वहां जाना ठीक नहीं होगा। फिर भी देवी सती ने उनकी बात नहीं मानीं। बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने के कारण भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी।

फिर देवी सती जब अपने पिता राजा दक्ष के यहां पहुंची तो जाकर उन्होंने देखा कि अपने पिता के यहां कोई भी उनसे सम्मान और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा था। वहीं देवी सती की अन्य बहनें भी उनका तथा शिवजी का मजाक उड़ा रहीं थीं। स्वयं देवी सती जे पिता प्रजापति दक्ष ने भी सती का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ा। इस प्रकार वहां मौजूद सभी लोग सती के साथ रूखा व्यवहार कर रहे थे लेकिन जब सती जी की माता ने अपनी बेटी को देखा तो प्यार से गले लगा लिया। परंतु अन्य सभी का ऐसा व्यवहार देखकर सती बहुत ही दुखी हो गईं। तब अपना और अपने पति शिवजी का अपमान उनसे सहन न हुआ।

इसके बाद इस अपमान से अत्यंत दुखी होकर सती ने उसी समय वहां यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग दिए। जैसे ही भगवान भोलेनाथ को इस बात की जानकारी हुई तो वे भी बहुत दुखी हो गए। इसके बाद दुखी भगवान शिव क्रोध से आगबबूला होते हुए राजा दक्ष के यहां गए और तुरंत यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। मान्यता है कि इसी सती ने फिर हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।

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