पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां पार्वती को बहुत तेज भूख लगी थी। बताया जाता है कि उस वक्त कैलाश पर खाने के लिए कुछ नहीं था। कहा जाता है कि तब मां पार्वती भगवान शंकर के पास पहुंच जाती हैं और भोजन की मांग करती हैं लेकिन भगवान भोलेनाथ अपनी समाधि में लीन होते हैं। मां पार्वती के निवेदन के बावजूद भोलेनाथ ध्यानमुद्रा में ही मग्न रहते हैं।
कथा के अनुसार, इस बीच मां पार्वती की भूख और तेज जाती है। भूख से इतना व्याकुल हो जाती हैं कि सांस खींचकर भगवान शंकर को ही निगल जाती हैं। बताया जाता है कि भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण मां के शरीर के धुआं निकलने लगता है। कहा जाता है ऐसा होने के कारण उनका स्वरूप श्रृंगारविहीन और विकृत हो जाता है। उसके बाद मां पार्वती की भूख शांत हो जाती है।
कथा के अनुसार, इसके भगवान शिव माया के द्वारा मां पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं और धूम से व्याप्त मां पार्वती के स्वरूप को देखकर कहते हैं कि आज से आपकी इस वेश में भी पूजा की जाएगी। यही कारण है कि मां पार्वती का नाम देवी धूमावती पड़ा।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने पिता के यज्ञ में अपनी स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया। कहा जाता है कि उनके जलते शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ। यही कारण है कि वे हमेशा उदास रहती हैं। माना जाता है कि मां धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप हैं।