पूजा का शुभ मुहूर्त- ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्तजन सुबह से ही पूजा-पाठ कर सकते हैं। इस दिन 19 मई को सुबह से साध्य योग है, जो दोपहर 02 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। तत्पश्चात शुभ योग प्रारंभ होगा। ये दोनों ही योग पूजा-पाठ के लिए विशेष फलदायी बताए गए हैं।
चंद्रोदय समय- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चतुर्थी तिथि को चंद्र देव के दर्शन और पूजा का खास विधान होता है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में एकदंत संकष्टी चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा का उदय 10 बजकर 56 मिनट पर होगा। इसलिए व्रत रखने वाले लोग चंद्र देव को जल अर्पित करने के बाद ही अपने व्रत का पारण करें।
गणपति को प्रिय मोदक और दुर्वा चढ़ाएं
माना जाता है कि विघ्नहर्ता से यदि आप किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति की इच्छा रखते हैं तो इसके लिए एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के बाद उन्हें मोदक का भोग लगाएं। आप मोदक के अलावा लड्डू का भी भोग लगा सकते हैं और फिर गणेश चालीसा का पाठ करें। वहीं इस दिन पूजा के समय गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठें इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः मंत्र के उच्चारण के साथ उनके सिर पर अर्पित करें। माना जाता है कि इससे भगवान श्री गणेश प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर इच्छा मनोकामना पूरी करते हैं।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)