पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी की तिथि की शुरुआत 16 मार्च रात 9.39 बजे से हो रही है, जबकि यह तिथि रविवार 17 मार्च 9.53 बजे संपन्न हो रही है। इसलिए उदयातिथि में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 17 मार्च को होगी और इसी दिन से होलाष्टक की शुरुआत मानी जाएगी। जबकि आठवें दिन 24 मार्च को होलिका दहन होगा और यह दिन होलाष्टक का आखिरी दिन होगा। फिर अगले दिन 25 मार्च को होली (धुलेंडी) से शुभ कार्यों से रोक हट जाएगी।
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त पहला दिनः रविवार 17 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय दूसरा दिनः रविवार 18 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त दूसरा दिनः रविवार 18 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय तीसरा दिनः रविवार 19 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त तीसरा दिनः रविवार 19 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय चौथा दिनः रविवार 20 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त चौथा दिनः रविवार 20 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय पांचवां दिनः रविवार 21 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त पांचवां दिनः रविवार 21 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त छठा दिनः रविवार 22 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय सातवां दिनः रविवार 23 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त सातवां दिनः रविवार 23 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्योदय आठवां दिनः रविवार 24 मार्च सुबह 6:37 बजे
होलाष्टक 2024 सूर्यास्त आठवां दिनः रविवार 24 मार्च शाम 6:33 बजे
होलाष्टक, होली और अष्टक (8वां दिन) से मिलकर बना है। मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में होते हैं, इसलिए इस समय शुभ कार्यों के अच्छे परिणाम नहीं मिल पाते। इसी कारण इस समय विवाह, बच्चे का नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश और किसी भी अन्य 16 हिंदू संस्कार या अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं। कुछ समुदाय में लोग होलाष्टक काल के दौरान कोई नया व्यवसाय या उद्यम भी नहीं शुरू करते।
होलाष्टक हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में उत्साह से मनाया जाता है। क्या आपको पता है होलाष्टक की परंपरा और क्या करते हैं इन दिनों..
होलाष्टक की परंपरा के अनुसार इस दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान का चयन किया जाता है। इसके बाद हर रोज होलिका दहन के स्थान पर छोटी-छोटी लकड़ियां एकत्र कर रखी जाती हैं। इसके अलावा पहले दिन से ही लोग किसी पेड़ की शाखा को रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाना शुरू करते हैं। हर व्यक्ति इस शाखा पर कपड़े का एक टुकड़ा बांधता है और आखिरी दिन उसे जमीन में गाड़ देता है। कुछ समुदाय होलिका दहन के दौरान कपड़ों के इन टुकड़ों को भी जलाते हैं ।
होलाष्टक तपस्या के दिन होते हैं। ये आठ दिन दान पुण्य के लिए विशेष होते हैं। इसलिए इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। इससे विशेष पुण्य फल मिलता है। इसके अलावा इस समय आध्यात्मिक कार्यों में समय बिताना चाहिए और सदाचार, संयम, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।