इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी (Goddess lakshmi) भी कहा जाता है। श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार इन्होंने ही सृष्टि की रचना की थी। इन्हीं से त्रिदेव, महाकाली, लक्ष्मी और महासरस्वती प्रकट हुई। इस संसार के सञ्चालन और पालन के लिए इन्होंने श्रीहरि से विवाह किया। ये जीवन उत्पन्न करती हैं और सुख समृद्धि देती हैं।
इन्हें वीर लक्ष्मी (Goddess lakshmi) भी कहा जाता है। भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में जो भी बढ़ाएं आती हैं, उन्हें ये दूर करती हैं। ये अकाल मृत्यु से भी हमारी रक्षा करती हैं। इन्हे मां कात्यायनी का रूप भी माना जाता है जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। ये युद्ध में विजय दिलाती हैं और वीरों की रक्षा करती हैं। इन्हे माता पार्वती का रूप भी माना जाता है।
इनकी पूजा स्कंदमाता के रूप में भी होती है। कुछ रूपों में इनके चार तो कुछ रूपों में आठ हाथ दिखाए गए हैं। इनमे से एक अभय और एक वरद मुद्रा में रहता है। ये गुणवान एवं लम्बी आयु वाले स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती है। ये बच्चों के लिए स्नेह का प्रतीक हैं एवं पिता को कर्तव्य एवं मां को सुख प्रदान करती हैं।
ये शिक्षा, ज्ञान और विवेक की देवी हैं। बुद्धि और ज्ञान का बल भी हमें इनसे ही प्राप्त होता है। विद्या लक्ष्मी (Goddess lakshmi) आत्म-संदेह एवं असुरक्षा का नाश करती हैं और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। विद्यार्थियों को माता लक्ष्मी (Goddess lakshmi) के इस रूप का ध्यान अवश्य करना चाहिए। ये आध्यात्मिक जीवन जीने में सहायता करती हैं एवं व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा को बाहर लाती हैं। इन्हे माता सरस्वती का दूसरा रूप भी माना जाता है।
ये प्रकृति और चमत्कारों की प्रतीक हैं। ये समानता का ज्ञान देती हैं क्यूंकि प्रकृति सबके लिए समान होती हैं। ये भोजन और कृषि का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इनके आठ हाथ हैं जिनमें कृषि उत्पाद भी होते हैं। इन्हे माता अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है। ये अनाज और पोषण की देवी (Goddess lakshmi) हैं और इनकी कृपा से ही हमारा घर धन-धान्य से भरा रहता है।
ये भूमि को उर्वरता प्रदान करती हैं। इनके इस रूप में दोनों ओर से गज शुद्ध जल से इनका अभिषेक करते रहते हैं। कमल पर विराजित इन देवी (Goddess lakshmi) के चार हाथ हैं जिनमें वे कमल का पुष्प, अमृत कलश, बेल और शंख धारण करती है। ये पशुधन को भी प्रदान करने वाली हैं। ये पशुधन में वृद्धि और हमारे जीवन में पशुओं के माध्यम से समृद्धि की प्रतीक हैं।
इन्हें जय लक्ष्मी (Goddess lakshmi) भी कहा जाता है। इनके आठ हाथ हैं जो अभय मुद्रा में होते हैं। इनकी पूजा कोर्ट-कचहरी की परेशानियों से बचने के लिए विशेष रूप से की जाती है। कठिन परिस्तिथियों में ये साहस बनाये रखने की प्रेरणा देती है। ये निडरता प्रदान करती हैं और हर कठिनाई में विजय दिलाती हैं।
8. धन लक्ष्मी
इन्हें श्री लक्ष्मी (Goddess lakshmi) भी कहते हैं जो धन और ऐश्वर्य का प्रतीक हैं। जब तिरुपति बालाजी के रूप में श्रीहरि ने कुबेर से ऋण लिया तो उन्हें उस ऋण से मुक्ति दिलाने के लिए माता (Goddess lakshmi) ने यह रूप लिया। इस रूप की पूजा धन प्राप्ति और ऋण मुक्ति हेतु विशेष रूप से की जाती है। इनके छः हाथ होते हैं। इस रूप में माता धन, संपत्ति, स्वर्ण, ऐश्वर्य इत्यादि तो देती ही है किन्तु इसके अतिरिक्त इच्छाशक्ति, साहस, दृढ संकल्प एवं उत्साह भी प्रदान करती हैं।