इसके अलावा सूर्यदेव को आदि पंचदेवों में से एक माने जाने के साथ ही ये कलयुग के एकमात्र दृश्य/प्रत्यक्ष देव भी हैं। माना जाता है कि इनकी उपासना से स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख, पद,सफलता,प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
सूर्यदेव की पूजा में ये सामग्री है जरूरी
सूर्यदेव की पूजा के लिए लाल फूल, तांबे का लोटा, कुमकुम या लाल चंदन, चावल, दीपक, तांबे की थाली आदि का होना आवश्यक माना गया है। वहीं इनके पूजन में आवाहन, आसन की जरुरत नहीं होती है।
पंडित एसके उपाध्याय के अनुसार कलयुग में सूर्य एकमात्र ऐसे देवता हैं जो प्रत्यक्ष ही दिखाई देते हैं। वहीं मान्यताओं के अनुसार उगते हुए सूर्य का पूजन अति उन्नतिकारी माना जाता हैं। इसका कारण ये है कि इस समय निकलने वाली सूर्य किरणों में सकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक होता है। जो कि शरीर को भी स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती हैं।
भगवान श्री सूर्यनारायण की पूजन विधि
सूर्यदेव के पूजन के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का ही उपयोग करें। वहीं इनकी पूजा के लिए लाल चंदन और लाल फूल की भी व्यवस्था रखें। साथ ही एक दीपक भी अवश्य रखें। भगवान श्री सूर्यनारायण के पूजन के तहत लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर मिला लें, फिर लोटे में लाल फूल भी डाल लें। अब थाली में दीपक और लोटा रख लें।
इसके पश्चात ‘ऊँ सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान सूर्यदेव को प्रणाम करें। इसके बाद लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाने के दौरान भी सूर्य मंत्र का जाप करते रहें। इस प्रकार से सूर्य को जल चढ़ाना सूर्य को अर्घ्य प्रदान करना कहलाता है।
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फिर ‘ऊँ सूर्याय नम: अर्घ्यं समर्पयामि’ कहते हुए पूरा जल समर्पित कर दें। अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। इस जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिम्ब एक बिन्दु के रूप में दिखाई देगा।
सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते समय दोनों भुजाओं को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। फिर सूर्य देव की आरती करने के पश्चात सात प्रदक्षिणा करें और फिर हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करें।
सूर्य उपासना से होती है रोग मुक्ति
भारत के सनातन धर्म में मुख्य रूप से पांच देवों की आराधना का महत्व है। आदित्य (सूर्य), गणनाथ (गणेशजी), देवी (दुर्गा), रुद्र (शिव) और केशव (विष्णु), इन पांचों देवों की पूजा सब कार्य में की जाती है। इनमें सूर्य ही ऐसे देव हैं जिनका दर्शन वर्तमान में भी प्रत्यक्ष होता रहा है।
यह तो हर कोई जानता है कि सूर्य के बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता। वहीं ये भी माना जाता है कि सूर्य की किरणों से शारीरिक व मानसिक रोगों से निवारण मिलता है। शास्त्रों में भी सूर्य की उपासना का उल्लेख है।
सूर्य की उपासना की सबसे खास बात यह है कि व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठने के पश्चात स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्छ वस्त्र धारण कर ही सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए।
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माना जाता है कि सूर्य के सम्मुख खड़े होकर अर्घ्य देने से जल की धारा के अंतराल से सूर्य की किरणों का जो प्रभाव शरीर पर पड़ता है उससे शरीर में विद्यमान रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा का संचार होने से सूर्य के तेज की रश्मियों से शक्ति आती है।
सूर्य को दिए जाने वाले दो प्रकार के अर्घ्य
सूर्य को दिए जाने वाले अर्घ्य दो प्रकार से दिए जा सकते हैं। इसके तहत संभव हो तो जलाशय अथवा नदी के जल में खड़े होकर अंजली अथवा तांबे के पात्र में जल भरकर अपने मस्तिष्क से ऊपर ले जाकर स्वयं के सामने की ओर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। वहीं दूसरी विधि में अर्घ्य कहीं से भी दिया जा सकता है। नदी या जलाशय हो, यह आवश्यक नहीं है।
इसमें एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें चंदन, चावल तथा फूल (यदि लाल हो तो उत्तम है अन्यथा कोई भी रंग का फूल) लेकर प्रथम विधि में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। यहां इस बात का ध्यान रखें कि चढ़ाया गया जल पैरों के नीचे न आए, इसके लिए तांबे अथवा कांसे की थाली रख लें। थाली में जो जल एकत्र हो, उसे माथे पर, हृदय पर और दोनों बाहों पर अवश्य लगाएं।
इसके अलावा कोई विशेष कष्ट होने पर सूर्य के सम्मुख बैठकर ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ या ‘सूर्याष्टक’ का पाठ करें। सूर्य के सम्मुख बैठना संभव न होने पर घर के अंदर ही पूर्व दिशा में मुख कर यह पाठ किया जा सकता है। वहीं निरोग व्यक्ति भी सूर्य उपासना द्वारा रोगों के आक्रमण से बच सकता है।