श्रीकृष्ण-रुक्मि का युद्धः भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भी एक युद्ध के बाद ही हो सका था। कथाओं के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी, भगवान कृष्ण से प्रेम करती थीं। रुक्मिणी के माता-पिता इसके लिए राजी थे, लेकिन उनका भाई रुक्मि बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ करना चाहता था और उनकी भावनाओं की अनदेखी कर रहा था। इससे रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को संदेश भेजा और भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया। इस पर शिशुपाल और रुक्मि की सेना का श्रीकृष्ण की सेना से युद्ध किया और इसमें विजय के बाद भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का विवाह हुआ।
इतिहास के अनुसार पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) और जयचंद मौसेरे भाई थी। जब नाना अनंगपाल ने पृथ्वीराज को दिल्ली का राज्य देने की घोषणा की तो ईर्ष्या से जयचंद पृथ्वीराज का शत्रु बन गया और नीचा दिखाने का अवसर खोजने लगा। जबकि जयचंद की बेटी संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता के किस्से सुनकर मन ही मन उन्हें पति मान लिया था, वह बेटी की भावनाओं की अनदेखी कर रहा था। जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया तो पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं दिया और उनकी लोहे की प्रतिमा गेट पर द्वारपाल के रूप में खड़ी कर दी।
इधर, संयोगिता ने पृथ्वीराज को विवाह करने का संदेश भेजा, फिर वेश बदलकर पृथ्वीराज कन्नौज पहुंचे। इधर संयोगिता ने जयमाला पृथ्वीराज के प्रतिमा के गले में डाल दी, इसकी जानकारी पर पृथ्वीराज संयोगिता को स्वयंवरशाला से उठा ले गए। दोनों की सेनाओं में युद्ध हुआ, लेकिन जयचंद की सेना पृथ्वीराज को रोक न सकी। इसने जयचंद को और भड़का दिया। उसने पृथ्वीराज को सबक सिखाने के लिए विदेशी शासक मुहम्मद गोरी को न्योता देने की भूल कर दी। बाद में तराइन का युद्ध हुआ। हालांकि इतिहासकार चंदरबरदाई की कथा पर सवाल उठाते हैं। बहरहाल जनमानस में इस तरह की कहानी व्याप्त रही।
चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का हमला
तमाम ग्रंथों के अनुसार चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की खूबसूरती के किस्से सुनकर अलाउद्दीन खिलजी उसे पाना चाहता था, इसके लिए उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। लेकिन रानी के सम्मान के लिए महाराजा रतन सिंह और उनकी सेना अपने से मजबूत राजा के सामने डट खड़ी हुई। हालांकि सेना मारी गई, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी को उसके मकसद में सफल नहीं होने दिया और रानी सहित अन्य महिलाओं ने भी अपने मान सम्मान के लिए जौहर कर लिया।