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रामायण से महाभारतकाल तक जब-जब हुआ महिलाओं का अनादर और भावनाओं की अनदेखी, युद्धों में टकराईं शमशीर

भारतीय संस्कृति (women in india) आधी आबादी को पूरा हक देने की हिमायती है, यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता (जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है) कहकर बार-बार उद्घोष भी किया गया है। यहां तक कि आदिदेव महादेव को अर्धनारीश्वर के रूप में पूजा जाता है और जब-जब इस मर्यादा को तोड़ा गया युद्धों में शमशीर टकराईं हैं, चाहे वह रामायणकाल हो या महाभारतकाल..आइये जानते हैं ऐसे युद्धों के बारे में जो महिलाओं से प्रेम या उनके सम्मान और अस्मिता की रक्षा (War for honor) के लिए लड़े गए..

May 08, 2023 / 09:59 pm

Pravin Pandey

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भारत में महिलाओं के सम्मान के लिए कई बार युद्ध लड़े गए

रामायणः भारत का धार्मिक इतिहास अनोखा और हैरान कर देने वाला है। रामायण की कथा तो आप जानते ही होंगे, रामानंद सागर के सीरियल रामायण ने तो इसे हिंदू धर्म मानने वालों के घर-घर तक पहुंचा दिया और यह कथा लोगों की जुबान पर है। रामायण की कथा के अनुसार राम रावण युद्ध की जड़ भी महिला के सम्मान और रक्षा के लिए लड़ा गया। कथा के अनुसार श्रीराम के वनवास के दौरान रावण की बहन शूर्पणखा उनके निवास स्थान पर पहुंच गई। यहां वह श्रीराम लक्ष्मण के रूप पर मोहित हो गई, और विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन दोनों के पहले से ही विवाहित होने से उन्होंने इंकार कर दिया। इससे क्रुद्ध शूर्पणखा जब सीता को खाने दौड़ी तो लक्ष्मण ने नाक काट दिया। इसका बदला लेने के लिए जब रावण ने सीता का हरण कर लिया। शांति प्रयास असफल होने के बाद श्रीराम ने वानर सेना की मदद से लंका पर चढ़ाई कर दी और सीता को छुड़ाया।
महाभारतः महाभारत की कथा के अनुसार महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण भले ही कौरवों की उच्च महत्वाकांक्षा और हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र का पुत्रमोह था। लेकिन इसके पीछे का तात्कालिक कारण भी जाने अनजाने एक महिला का अपमान बना। राजसूय यज्ञ के लिए खांडवप्रस्थ पहुंचे दुर्योधन ने गलती से पानी में पैर रख दिया तो यह देख रही द्रौपदी ने अंधे का पुत्र अंधा कहकर मजाक उड़ा दिया था। इसका बदला लेने के लिए दुर्योधन ने छल से द्यूत का आयोजन किया और सभी पांडवों और द्रौपदी को जीत लिया। दुर्योधन यहीं नहीं रूका और वह मर्यादा लांघ दी जो युद्ध का तात्कालिक कारण बना। उसने भाई दुशासन को द्रौपदी को घसीटकर बुलाने के लिए कहा और यहां उनका चीर हरण कराने की कोशिश की। यहां द्रौपदी ने कसम खाई थी कि जब तक दुर्योधन के रक्त से अपने बाल नहीं धोएगी, अपने बालों को नहीं बांधेगी। पांडवों ने भी इस अपमान का बदला लेने की कसम खाई थी, जिसके बाद युद्ध अवश्यंभावी हो गया।
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श्रीकृष्ण-रुक्मि का युद्धः भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह भी एक युद्ध के बाद ही हो सका था। कथाओं के अनुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी, भगवान कृष्ण से प्रेम करती थीं। रुक्मिणी के माता-पिता इसके लिए राजी थे, लेकिन उनका भाई रुक्मि बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ करना चाहता था और उनकी भावनाओं की अनदेखी कर रहा था। इससे रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को संदेश भेजा और भगवान कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया। इस पर शिशुपाल और रुक्मि की सेना का श्रीकृष्ण की सेना से युद्ध किया और इसमें विजय के बाद भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का विवाह हुआ।
जयचंद-पृथ्वीराज युद्ध और पृथ्वीराज-मुहम्मद गोरी का तराइन का युद्ध
इतिहास के अनुसार पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) और जयचंद मौसेरे भाई थी। जब नाना अनंगपाल ने पृथ्वीराज को दिल्ली का राज्य देने की घोषणा की तो ईर्ष्या से जयचंद पृथ्वीराज का शत्रु बन गया और नीचा दिखाने का अवसर खोजने लगा। जबकि जयचंद की बेटी संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता के किस्से सुनकर मन ही मन उन्हें पति मान लिया था, वह बेटी की भावनाओं की अनदेखी कर रहा था। जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया तो पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं दिया और उनकी लोहे की प्रतिमा गेट पर द्वारपाल के रूप में खड़ी कर दी।

इधर, संयोगिता ने पृथ्वीराज को विवाह करने का संदेश भेजा, फिर वेश बदलकर पृथ्वीराज कन्नौज पहुंचे। इधर संयोगिता ने जयमाला पृथ्वीराज के प्रतिमा के गले में डाल दी, इसकी जानकारी पर पृथ्वीराज संयोगिता को स्वयंवरशाला से उठा ले गए। दोनों की सेनाओं में युद्ध हुआ, लेकिन जयचंद की सेना पृथ्वीराज को रोक न सकी। इसने जयचंद को और भड़का दिया। उसने पृथ्वीराज को सबक सिखाने के लिए विदेशी शासक मुहम्मद गोरी को न्योता देने की भूल कर दी। बाद में तराइन का युद्ध हुआ। हालांकि इतिहासकार चंदरबरदाई की कथा पर सवाल उठाते हैं। बहरहाल जनमानस में इस तरह की कहानी व्याप्त रही।

चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का हमला
तमाम ग्रंथों के अनुसार चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की खूबसूरती के किस्से सुनकर अलाउद्दीन खिलजी उसे पाना चाहता था, इसके लिए उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। लेकिन रानी के सम्मान के लिए महाराजा रतन सिंह और उनकी सेना अपने से मजबूत राजा के सामने डट खड़ी हुई। हालांकि सेना मारी गई, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी को उसके मकसद में सफल नहीं होने दिया और रानी सहित अन्य महिलाओं ने भी अपने मान सम्मान के लिए जौहर कर लिया।

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