भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन! प्राचीन समय की बात है चंपावती नगर में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार बेटे थे, इसमें से लुम्पक नाम का बेटा अनाचारी था। वह बुरे कर्म में लगा रहता था और पिता का धन नष्ट करता था। इससे तंग आकर राजा ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया।
ये भी पढ़ें: Saphala Ekadashi Puja 2022: जानिए कब है सफला एकादशी, क्यों रखते हैं इस दिन व्रत राज्य से निकाले जाने से उसने वन में एक पीपल के पेड़ के नीचे आश्रय लिया, दिन में वह वन में रहता और रात में पिता के राज्य में रहकर चोरी करता और प्रजा को तंग करता। इससे नगर के लोग भयभीत रहते थे। धीरे-धीरे वह पशु मारकर खाने लगा, राज्य कर्मचारी उसे पकड़ भी लेते तो छोड़ देते। लेकिन कुछ समय बाद पौष का महीना आया, तब तक उसके वस्त्र फट गए थे। इसके कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन सर्दी के कारण वह रात में सो नहीं सका, उसके हाथ पैर भी अकड़ गए थे।
सुबह होते-होते वह बेहोश हो गया। एकादशी के दिन दोपहर बाद सूर्य की गर्मी से उसको होश आया। लेकिन वह निशक्त था, किसी तरह वह भोजन की तलाश में निकला। आज वह पशुओं को मारने में समर्थ नहीं था, इसलिए वृक्षों के नीचे फल चुनकर पीपल के पेड़ के नीचे लौट आया। इस वक्त तक सूर्यास्त हो चुका था। इससे भोजन के प्रति उसका लगाव भी खत्म हो चुका था। इस पर उसने सारे फल वृक्ष के नीचे रखकर कहा कि हे भगवन! अब आपके ही अर्पण हैं ये फल, आपही तृप्त हो जाइये। इसके बाद उसने सोने की कोशिश की, लेकिन रात को नींद नहीं आई।
ये भी पढ़ें: Rohini Vrat 2023 date: नए साल में 14 दिन पड़ेगा रोहिणी व्रत, जानिए डेट लुंपक के इस उपवास और जागरण से भगवान प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए। एक सुंदर घोड़ा आकर्षक वस्तुओं से सजा हुआ उसके पास आया और आकाशवाणी हुई कि हे लुंपक, श्रीनारायण की कृपा से तेरे सारे पाप नष्ट हो गए हैं। अपने पिता के पास जा और राज्य प्राप्त कर। इस पर लुंपक भगवान की जय बोलता हुआ अपने राज्य लौट गया। पिता ने उसे राज्य सौंप दिया। वृद्ध होने पर वह पुत्र को राज्य सौंपकर तपस्या करने चला गया। इससे उसे बैकुंठ प्राप्त हुआ।
यह मिलता है फलः भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि सफला एकादशी व्रत का महात्म्य पढ़ने या सुनने से अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य फल मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि द्वादशीयुक्त पौष कृष्ण एकादशी यानी सफला एकादशी व्रत में मौसमी फल नारियल, नींबू, नैवेद्य समेत 16 वस्तुओं से पूजा करनी चाहिए और रात्रि जागरण करना चाहिए। इस सफला एकादशी व्रत के समान कोई दूसरा व्रत नहीं है। पांच हजार साल तप से जो फल मिलता है, उससे अधिक पुण्य फल सफला एकादशी से मिलता है।