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प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य ने बताया कुंभ लगने का नियम, इस खास कैलेंडर से होता है तय

Mahakumbh 2025: न अंग्रेजी कैलेंडर न हिंदी कैलेंडर या पंचांग, इस कैलेंडर से तय होता है कब लगेगा कुंभ, आइये जानते हैं कुंभ के समय निर्धारण का खास नियम, जिसे बताया है प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य ने ..

नई दिल्लीDec 20, 2024 / 11:17 am

Pravin Pandey

Mahakumbh 2025

Mahakumbh 2025: महाकुंभ लगने के नियम कैसे होता है निर्धारण

Mahakumbh 2025: प्रयागराज में 12 साल बाद संगम तट पर इस साल महाकुंभ मेला 2025 लगने वाला है, मकर संक्रांति यानी माघ कृष्ण प्रतिपदा से इसकी शुरुआत हो जाएगी, हालांकि इसके एक दिन पहले ही पूजा अर्चना से मेला भरने लगता है। लेकिन आप जानकर हैरान होंगे, कुंभ मेला लगने के खास नियम है।

इसकी तिथि न हिंदी कैलेंडर को फॉलो करती है और न अंग्रेजी कैलेंडर को बल्कि इसका निर्धारण ग्रहों की चाल के आधार पर होता है। इसके कुछ खास नियम भी हैं तो आइये जानते हैं कब लगता है और कुंभ आयोजन के नियम क्या हैं।


इस आकाशीय घड़ी से होता है कुंभ का निर्धारण

Kumbh mela lagane ka niyam: भारतीय ज्योतिष के अनुसार आकाश में शनि, बृहस्पति, सूर्य, मंगल और चंद्रमा आदि ग्रह पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए घड़ी के समान काम करते हैं। प्राचीन काल से ही भारत में सारे कामकाज इन ग्रहों की चाल के आंकलन से ही किए जाते रहे हैं। इसी कारण हिंदू धर्म के प्रमुख आयोजन के समय निर्धारण में ग्रहों की चाल का ध्यान दिया जाता है।

ग्रह नक्षत्रं शोध संस्थान प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार प्राचीन काल से ही भारत में ग्रह और नक्षत्र हमारे लिए घड़ी का काम करते रहे हैं। यदि एक साल की गणना करनी हो तो बृहस्पति ग्रह के मूवमेंट पर ध्यान दिया जाता है, एक माह संबंधित गणना के लिए सूर्य की चाल, ढाई साल की गणना में शनि का ध्यान दिया जाता है, डेढ़ महीने के आंकलन के लिए मंगल को आधार बनाया जाता है और ढाई दिन के लिए चंद्रमा की चाल देखी जाती है।
इसी ग्रह कैलेंडर से भारत में प्रमुख धार्मिक घटनाओं के समय का निर्धारण होता है। कुंभ मेला के निर्धारण का आधार बृहस्पति ग्रह की चाल है। आइये जानते हैं ज्योतिष के आधार पर कुंभ मेला कब लगता है..
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जानें कब लगता है कुंभ मेला

ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार सागर मंथन के दौरान निकले अमृत को पाने की छीना झपटी में भारत के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत की बूंदें गिर गईं थीं। इन्हीं स्थानों पर हर 12 साल बाद क्रमशः विशेष ग्रह नक्षत्र स्थितियों पर कुंभ मेला लगता है। हालांकि प्रयागराज में हर छठें साल अर्ध कुंभ भी लगता है। इन सभी स्थानों पर कुंभ के समय के निर्धारण का खास नियम और ग्रह कैलेंडर होता है जो ग्रहों की चाल विशेष रूप से बृहस्पति की चाल पर आधारित है।


कुंभ मेला लगने का नियम (rules of Kumbh)

jupiter movement: ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार कुंभ का शाब्दिक अर्थ है घड़ा, सुराही या बर्तन जबकि मेला शब्द का अर्थ है किसी स्थान पर मिलना, साथ चलना, सभा या विशेष सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। इस तरह कुंभ मेले का अर्थ अमरत्व और आध्यात्मिक मेले के रूप में लिया जाता है।
यहां लोग आकर संगम तट पर कल्पवास करते हैं, गंगा स्नान और ईश्वर चर्चा में समय बिताकर मन की शांति और आध्यात्मिक शुद्धि पाते हैं। इस समय ग्रहों की स्थिति साधना और एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम होती है। प्रयागराज में संगम तट पर इसके लिए जुटने वाले लाखों श्रद्धालुओं के चलते इसे महाकुंभ भी कहा जाता है।

आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार कुंभ मेले के लगने का निर्धारण बृहस्पति ग्रह की चाल के आधार पर और 12 साल में बृहस्पति के राशि चक्र को पूरा करने पर होता है। इसके खास नियम हैं, आइये जानते हैं..
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प्रयागराज और अन्य जगहों पर कुंभ मेला का नियम

आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार जब बृहस्पति भ्रमण करते हुए वृषभ राशि में आते हैं और सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करते हैं हैं तब प्रयागराज में संगम तट पर कुंभ मेला लगता है। यह घटना दुर्लभ है, क्योंकि यह 12 साल बाद होती है।
विशेष बात यह है कि यह घटना अक्सर माघ महीने में ही होती है। इसी कारण इसे कुंभ माघ मेला भी कहते हैं। इससे पहले प्रयागराज में कुंभ 2013 में और अर्धकुंभ 2019 में लगा था। आइये जानते हैं हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कब लगता है माघ मेला ..

हरिद्वारः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति के कुंभ राशि में और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश होने पर हरिद्वार में गंगा किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है।
नासिकः तीसरा बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में आने पर नासिक में गोदावरी के किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है।
उज्जैनः चौथा कुंभ उज्जैन में तब लगता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह कुंभ मेला उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर लगता है।
अर्धकुंभः इसके अलावा प्रयागराज में जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्यचंद्र मकर राशि में अमावस्या के दिन प्रवेश करते हैं तब प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर अर्ध कुंभ लगता है। इस तिथि को कुंभ स्नान योग कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन संगम स्नान से आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति सहजता से हो जाती है।

अमृत के समान होता है पानी

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब माघ महीने में सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं तो इसके ज्योतिषीय प्रभाव से सूर्य किरणों का पानी से रिफ्लेक्शन शरीर के लिए फायदेमंद होता है। इस कारण इस समय यहां का पानी औषधीकृत और अमृत तुल्य हो जाता है। मौनी अमावस्या पर सूर्य और चंद्र किरणों के मिलन के समय इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है।

डॉक्टर कर रहे शोध

ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार कुंभ मेले के दौरान सूर्य की किरणों के पानी में रिफ्लेशन और उस जल के स्नान का शरीर के लाभ यानी कुंभ में स्नान का वैज्ञानिक पक्ष उजागर करने के लिए ग्रह नक्षत्र ज्योतिष संस्थान, डॉ. डीएन केसरवानी, डॉ. वैभव सिंह के पैनल के साथ 2001 से शोध कर रहा है।

कब से कब तक लगेगा प्रयागराज में महाकुंभ मेला

kumbh mela 2025 prayagraj date: प्रयागराज महाकुंभ मेला पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 को फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के साथ समाप्त होगा। इसके विशेष स्नान समय मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी आदि हैं।

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