यहां जानें क्यों मनाई जाती है लोहड़ी
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुवाई और उसकी कटाई का प्रमुख त्योहार है। लहलहाती फसल के लिए ईश्वर (सूर्य और अग्नि देव) को धन्यवाद और आभार जताने का, और नई फसल बोने से पहले उसके बेहतर उत्पादन की कामना करते हुए ईश्वर को याद करने का दिन है लोहड़ी। यह दिन गर्म मौसम के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है। दरअसल लोहड़ी के एक दिन बाद यानी मकर संक्रांति से दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। इस तरह इस पर्व पर जलाया जाने वाला अलाव इसी का संकेत देता है। पंजाब और हरियाणा समेत उत्तर भारत में कई जगह इस दिन नई फसल की पूजा की जाती है। फिर रात के समय लकडिय़ों का ढेर लगाकर आग लगाई जाती है। इस पवित्र अग्नि की पूजा कर इसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली डाली जाती है। फिर इसकी परिक्रमा करते हुए पुरुष भांगड़ा करते हैं तो महिलाएं गिद्दा करती हैं।
इस कहानी के बिना अधूरा है यह पर्व
लोहड़ी के दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने की परंपरा है। इस दिन दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने के पीछे एक बेहद दिलचस्प कारण है। कहा जाता है कि अकबर के शासन में पंजाब में दुल्ला भट्टी नामक एक शख्स रहता था। यह वो समय था जब कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे। तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। दुल्ला भट्टी अकबर की नजर में एक डकैत था, लेकिन गरीबों के लिए वो किसी रॉबिनहुड से कम नहीं था। तभी से दुल्ला भट्टी को एक नायक के रूप में देखा जाता है और हर साल लोहड़ी पर उसकी कहानी सुनाई जाती है।
न्यूली मैरिड कपल के लिए खास होती है लोहड़ी
लोहड़ी का यह पर्व नव विववाहितों के लिए और परिवार में जन्म लेने वाली पहली संतान के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। लोहड़ी के दिन घर में आई नई दुल्हन को उसके ससुराल की ओर से तोहफे दिए जाते हैं, तो घर में जन्मे पहले बच्चे को भी उपहार देकर परिवार में उसका स्वागत किए जाने की परम्परा है।
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