धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नित्य नियमपूर्वक समय पूर्व जागकर त्रिकाल संध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है, धीरे-धीरे एकाग्रता बढ़ती है। भगवान के प्रति आस्था प्रेम, श्रद्धा भक्ति और अपनापन बढ़ता है। मुंह पर तेज, आभा बढ़ती है। कुसंस्कार जलते हैं और विकार समाप्त होते हैं। इसके अलावा प्रातःकालीन संध्या से रात्रि में जाने-अनजाने हुए पाप नष्ट हो जाते हैं, दोपहर संध्या से सुबह से दोपहर के और सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार त्रिकाल संध्या करने वाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है। संध्या से अपार आनंद प्राप्त होता है। इससे हृदय और इंद्रियां स्वस्थ होती हैं और शांति लाभ प्राप्त करती हैं। शरीर स्वस्थ होता है और इस समय किया गया प्राणायाम सर्वरोगनाशक औषधि का कार्य करता है।
संध्या के समय सोने के नुकसान
और्व मुनि ने राजा सगर से संध्योपासना के फायदे और नुकसान बताए थे। मुनि ने राजा से कहा था कि हे राजन! बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए सायंकाल के समय सूर्य के रहते हुए और प्रातःकाल तारागण के चमकते हुए आचमन आदि करके नियम से संध्योपासना करना चाहिए। सूतक (संतान जन्म की अशुचिता), अशौच (मृत्यु से होने वाली अशुचिता), उन्माद, रोग और भय आदि कोई बाधा न हो तो प्रतिदिन संध्योपासना करनी चाहिए। इससे ओज, बल, आरोग्य, धन-धान्य की वृद्धि होती है।
मुनि के अनुसार जो व्यक्ति बीमारी होने के समय को छोड़कर जो व्यक्ति सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोता है, वह प्रायश्चित का भागी होता है। साथ ही वह व्यक्ति इससे मिलने वाले अद्भुत फायदों से भी वंचित हो जाता है।