दृक पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सात जून को 12.50 एएम से लग रही है और यह तिथि इसी दिन रात 9.50 पीएम पर संपन्न होगी। इसलिए सात जून को ही कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी पूजा में चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है और सात जून को चंद्रोदय रात 10.50 पीएम पर होगा।
कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी एक वजह से और खास है। कृष्ण पिंगला चतुर्थी बुधवार को पड़ रही है, यह दिन गणेशजी की साप्ताहिक पूजा का भी दिन है। इससे इसका महत्व बढ़ गया है, इस व्रत का फल भी अधिक मिलेगा। इस दिन पूजा पाठ और उपवास से भगवान गणेश की कृपा तो प्राप्त ही होगी, बुध ग्रह संबंधी दोष भी दूर होंगे और बुध ग्रह की कृपा से जातक की भाषण कला आदि में निखार आएगा।
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1. आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान कर पूजा और व्रत का संकल्प लें।
2. इसके बाद साफ पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनें।
3. घर की साफ-सफाई कर पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।
4. पूजास्थल पर एक लकड़ी की चौकी पर साफ लाल वस्त्र बिछाकर गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें।
5. भगवान गणेश के सामने घी का दीया जलाएं, धूप जलाएं और सिंदूर चढ़ाएं।
6. इसके बाद गणेशजी को फूल, दूर्वा और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं।
7. भगवान के भोग के लिए मोदक या मोतीचूर के लड्डू और फल जरूर चढ़ाएं।
8. इसके बाद गणेशजी के मंत्रों का जाप करें, गणेश चालीसा का पाठ करें और आरती उतारें।
9. संध्या के समय फिर चंद्रमा को अर्घ्य दें, व्रत कथा पढ़ें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
10. इसके बाद फलाहार करें और अगले दिन पंचमी तिथि में व्रत का पारण करें।