1. करवा चौथ व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक किया जाता है और चंद्रम के दर्शन के बाद अर्घ्य देकर खोला जाता है।
2. शाम के समय चंद्रोदय से 1 घंटा पहले शिव परिवार ( भगवान शिव, मां पार्वती, नंदी, भगवान गणेश और कार्तिकेय) की पूजा की जाती है।
3. पूजा के समय देव-प्रतिमा का मुंह पश्चिम की तरफ होना चाहिए और स्त्री को पूर्व की तरफ मुख करके बैठना चाहिए।
1. सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफाई करें। फिर सास की सरगी ग्रहण करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. यह व्रत उनको सूरज अस्त होने के बाद चंद्र दर्शन करके ही खोलना चाहिए और इस बीच जल भी नहीं पीया जाता।
3. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए खास मिट्टी के कलश) रखें।
4. पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चंदन, रोली, सिंदूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
5. चंद्रमा उदय से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएं साथ पूजा करें।
6. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएं।
7. चंद्र दर्शन छलनी से किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए।
8. चंद्र दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।
करवा चौथ कथा
करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गई। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में जला कर आया और अपनी बहन से बोला व्रत तोड़ लो, चांद निकल आया है।