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Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज व्रत की पावन कथा यहां पढ़ें

पौराणिक मान्यताओं अनुसार ये व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए रखा था।

Aug 30, 2022 / 09:17 am

Laveena Sharma

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Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज व्रत की पावन कथा यहां पढ़ें

हिंदू धर्म में हरतालिका तीज का विशेष महत्व माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है जो महिला पूरी श्रद्धा से इस व्रत को करती है उसे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ये व्रत निर्जला रखा जाता है। पौराणिक मान्यताओं अनुसार ये व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए रखा था।

ये पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। जो 2022 में 30 अगस्त को पड़ी है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला और निराहार व्रत करती हैं। इस व्रत वाले दिन हरतालिका तीज व्रत कथा पढ़ना बेहद जरूरी माना जाता है। जो इस प्रकार है।

मान्यता है हरतालिका व्रत की कथा स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। शिव जी माता पार्वती से कहते हैं- ‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए क‍ठोर तपस्या की थी। तुमने इस तपस्या के दौरान न ही कुछ खाया और न ही कुछ पीया। बस हवा और सूखे पत्ते चबाकर रहीं। भयंकर गर्मी और कंपा देने वाली ठंड भी तुम्हें तपस्या से न हटा सकी। बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हारी ये हालत तुम्हारे पिता से देखी नहीं जा रही थी। उनको दु:खी देख नारदमुनि उनके पास पहुंचे और कहा कि मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या की से विवाह करना चाहते हैं।

नारदजी की बात सुनकर तुम्हारे पिता बोले कि यदि भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं। परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम अत्यंत ही दुःखी हो गईं। तुम्हारी सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने बताया कि तुमने सच्चे मन से मेरा (भगवान शिव) वरण किया है, किन्तु तुम्हारे पिता ने विष्णुजी के साथ तुम्हारा विवाह तय कर दिया है। दुखी होकर तुमने अपनी सहेली से कहा कि तुम्हारे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा है।

तुम्हारी सखी ने कहा-प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है? मैं तुम्हें ऐसे घनघोर वन में ले चलती हूं जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। तुमने अपनी सखी की बात मानकर ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। तुमने एक दिन रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा।

तुमने कहा, ‘मैं आपका सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया। उसी समय तुम्हारे पिता भी तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंच गए। तुमने अपने पिता से कहा कि मैं घर तभी जाउंगी जब आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए और उन्होने हमारा विवाह करवा दिया। मान्यता है जिस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी।

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