उसकी इस क्रिया से नाराज होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृतपान के कारण उसके शरीर के वह दोनों भाग जीवित रहे। इनमें से सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाया।
इस पूरी कथा के अनुसार राहु के द्वारा जब अमृत ग्रहण किया जा रहा था तो उसे सूर्य व चंद्र ने पहचान लिया और भगवान विष्णु से उसकी शिकायत कर दी। माना जाता है तभी से ये सूर्य व चंद्र का शत्रु हो गया,जिसके बाद से राहु सूर्य का व केतु चंद्र का ग्रास करने लगा।
राहु व केतु भले ही दैत्य ग्रह हैं, लेकिन इसके बावजूद राहु आध्यात्मिक ज्ञान का कारक और केतु मोक्ष का कारक माना गया है। इनका स्वभाव हमेशा ही अनिश्चित और अप्रत्याशित होता है। वहीं राहु को वायु तत्व जबकि केतु को अग्नि तत्व से संबंधित माना जाता है।
राहु दोष निवारण के उपाय
पंडित शर्मा के अनुसार राहु दोष से पीड़ित जातक को शनिवार के दिन शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
: इसके अलावा ऐसे जातक को रसोई घर में जमीन पर आसन लगाकर बैठने के पश्चात अग्नि के सामने ही हमेशा भोजन करना चाहिए।
: इसके अलावा पूजा के तहत ऐसे जातक को भगवान शिव की पूजा अवश्य करनी चाहिए। माना जाता है कि शिवलिंग को दूध,दही,गंगाजल,घी और शहद से स्नान कराने से राहु दोष के दुष्प्रभाव में राहत मिलती है।
: हर रोज कम से कम 108 बार महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करने से भी राहु के दोष में कमी आती है।
: शनिवार का उपवास भी राहु को प्रसन्न करने वाला माना जाता है।
: राहु के दुष्प्रभाव में कमी लाने के लिए मछलियों को दाना डालना भी खास माना जाता है।
: इसके अलावा राहु बीज मंत्र का जाप भी राहु के दुष्प्रभाव से राहत देता है।