एक भक्त के अनुसार, कानपुर के पनकी में मंदिर का उद्घाटन होना था, इन दिनों बाबा नीम करोली अपने शीतकालीन प्रवास के लिए प्रयागराज में थे। इस बीच कानपुर से आए भक्तों ने उनसे उद्घाटन कार्यक्रम में पधारकर आशीर्वाद देने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने भक्तों को मना कर दिया। इससे निराश और दुःखी होकर भक्त लौट गए।
इधर, उद्घाटन के दिन प्रयागराज में बाबाजी ने स्नान ध्यान के बाद अपने कपड़े बदले और अपने कमरे में लौट आए। करीब सात बजे उन्होंने भक्त को बताया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, उन्होंने खुद को कंबल से ढंक लिया और उसे दरवाजे पर ताला लगाने के लिए कहा, ताकि कोई भी बिना उनकी इजाजत कमरे में प्रवेश न कर पाए।
इधर, घंटों बीत गए और बाहर दर्शन के लिए इंतजार कर रहे दूसरे लोग तरह-तरह की बातें करते रहे। करीब बारह बजे बाबा ने दरवाजे पर खड़े भक्त से समय पूछा और कहा “ओह, मुझे सोए हुए पांच घंटे हो गए, लेकिन इतनी अच्छी नींद आई कि मैं तरोताजा महसूस कर रहा हूं। इसके बाद बाबा के कमरे का दरवाजा खोला गया और लोग दर्शन करने पहुंचे।
अगले दिन, बाबाजी अपने भक्तों से घिरे हुए हॉल में बैठे थे, तभी एक व्यक्ति पनकी मंदिर के उद्घाटन समारोह से लड्डू – प्रसाद की एक टोकरी लेकर आया। उसने ताला बंद करने वाले भक्त को टोकरी थमाते हुए कहा कि बाबाजी सुबह पनकी पहुंचे थे, लेकिन बारह बजे अचानक गायब हो गए। हमने उन्हें खोजा, लेकिन वह वहां नहीं मिले, इसलिए हम उनके लिए प्रसाद लेकर यहां आ गए।
इस पर भक्त श्रीजगती ने कहा कि आप क्या बात कर रहे हैं, बाबाजी यहां अपने बिस्तर पर अस्वस्थ महसूस कर रहे थे, और हम बाहर उनका इंतजार कर रहे थे। बारह बजे दरवाजा खोला गया और हम सभी ने उन्हें देखा। जब वे अपने कमरे में ताले के भीतर थे तो पनकी में कैसे जा सकते थे। दोनों भक्त एक दूसरे को कन्वींस करने की कोशिश करते रहे और बाबा मुस्कुराते रहे।