गायत्री मन्त्र के आधार पर वेदों का निर्माण हुआ है
यों तो बहुत से मन्त्र हैं। उनके सिद्ध करने और प्रयोग करने के विधान अलग-अलग और फल भी अलग-अलग है। परन्तु एक मंत्र ऐसा है जो सम्पूर्ण मन्त्रों की आवश्यकता को अकेला ही पूरा करने में समर्थ है और वह मात्र गायत्री मन्त्र है। गायत्री मन्त्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद चारों वेदों में है। इसके अतिरिक्त और कोई ऐसा मन्त्र नहीं है जो चारों वेदों में पाया जाता हो। गायत्री वास्तव में वेद की माता है। तत्वदर्शी महात्माओं का कहना है कि गायत्री मन्त्र के आधार पर वेदों का निर्माण हुआ है, इसी महामन्त्र के गर्भ में से चारों वेद उत्पन्न हुए हैं। वेदों के मन्त्र दृष्टा ऋषियों ने जो प्रकाश प्राप्त किया है वह केवल गायत्री से ही प्राप्त किया है।
तेजस्वी परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना
गायत्री मन्त्र का अर्थ इतना गूढ़ गंभीर और अपरिमित है कि उसके एक-एक अक्षर का अर्थ करने में एक-एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है। आध्यात्मिक, बौद्धिक, शारीरिक, सांसारिक, ऐतिहासिक, अनेक दिशाओं में उसका एक एक अक्षर अनेक प्रकार के पथ प्रदर्शन करता है। वह सब गूढ़ रहस्य यहां इन थोड़ी सी पंक्तियों के छोटे से लेख में लिखा नहीं जा सकता। यहां तो पाठकों को गायत्री का प्रचलित, स्थूल और सर्वोपयोगी भावार्थ यह समझ लेना चाहिए कि-तेजस्वी परमात्मा से सद्बुद्धि की याचना इस मन्त्र में की गई है।
अनेक आपत्तियों का निवारण करने की शक्ति गायत्री माता में है
श्रद्धापूर्वक इस मन्त्र की धारणा करने पर मनुष्य तेजस्वी और विवेकशील बनता है। गायत्री माता अपने प्रिय पुत्रों को तेज और बुद्धि का प्रसाद अपने सहज स्नेह वश प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त अनेक आपत्तियों का निवारण करने की शक्ति गायत्री माता में है। कोई व्यक्ति कैसी ही विपत्ति में फंसा हुआ हो यदि श्रद्धापूर्वक गायत्री की साधना करे तो उसकी आपत्तियां कट जाती हैं और जो कार्य बहुत कठिन तथा असंभव प्रतीत होते थे वे सहज और सरल हो जाते हैं।
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