क्या है पंचशूल से जुड़ी मान्यता
हिंदू धर्म में त्रिशूल को भगवान शिव का हथियार माना गया है यह तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश का बोध कराता है। वहीं भगवान शिव के त्रिशूल को रचना, पालक और विनाश का प्रतीक माना गया है। आमतौर पर भगवान शिव के मंदिर में उनके त्रिशूल को भी स्थापित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ धाम एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके शिखर पर भोलेनाथ का त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल स्थित है।
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान शिव के परम भक्त रावण की लंका के प्रवेश द्वार पर पंचशील को स्थापित किया गया था जो कि सुरक्षा कवच का प्रतीक था। कहा जाता है कि इस पंचशूल को केवल रावण ही भेद सकता था। लेकिन प्रभु श्री राम और रावण के बीच युद्ध के दौरान विभीषण ने इसका भेद राम जी को बता दिया था तब जाकर उन्होंने लंका में प्रवेश किया। मान्यता है कि इस पंचशील के कारण बैद्यनाथ धाम पर आज तक कोई प्राकृतिक संकट नहीं आया है।
इस पंचशूल को महाशिवरात्रि के 2 दिन पहले उतारकर इसकी विधि-विधान से पूजा की जाती है और फिर दोबारा मंदिर के शिखर पर स्थापित कर दिया जाता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)