रतलाम। भय को हरण करने के कारण शिव के अंश अवतार का नाम भैरव पड़ा। वे लोग जिनकी कुंडली में पितृदोष हो, राहु दुसरे, पांचवे, सातवे, दसवे या बारहवे भाव में हो, एेसे लोगों को भैरव आराधना करना चाहिए। इससे पितृ शांत होते है व जेल जाने के योग का शमन भी होता है। सोमवार को भैरव अष्टमी या कालाअष्टमी है। एेसे में ये भैरव व पितृ को प्रसन्न करने का सबसे बेहतर दिन है। ये बात नक्षत्रलोक में रतलाम रके पूर्व राज परिवार के ज्योतिषी अभिषेक जोशी ने कही। वे भैरव अष्टमी का महत्व व पूर्वजों को प्रसन्न करने के टोटके विषय पर बोल रहे थे।
ज्योतिषी जोशी ने इस दौरान बताया कि जब-जब कुंडली में 12वां राहु आता है या इस घर में कोई योग बनाता है व्यक्ति को जेल की यात्रा करना होती है। कुछ दिन से तो आरोप लगाना व बाद में इससे पलटने का दौर चल रहा है। एेसे में कुछ समय के लिए ही सही, मनुष्य को पीड़ा भोगना होता है। इसलिए ये जरूरी है कि जिनकी कुंडली में पितृदोष हो, उनको सोमवार के दिन विशेष टोटके कर लेना चाहिए। सबसे बेहतर ये है कि सामान्य दिनों में जब महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर से निकले तो दो लौंग व थोड़ा सा गुड़ घर की देहरी पर रख दे। इसके बाद पलटकर न देखें व कार्य के लिए चले जाए। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।
पहले जाने कब हुए ये प्रकट मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान महादेव भैरव रुप में प्रकट हुए थे। कालाअष्टमी का व्रत इसीलिए प्रतिमाह इस तिथि को किया जाता है। महादेव का ये अवतार एक खास उद्देश्य के लिए हुआ था। कहते है कि एक बार श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी में इस बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है, विवाद इस हद तक बढ़ गया कि शिवशंकर की अध्यक्षता में एक सभा बुलायी गयी। इस सभा में ऋषि-मुनि, सिद्ध संत, उपस्थित हुए. सभा का निर्णय श्री विष्णु ने तो स्वीकार कर लिया परंतु ब्रह्मा जी निर्णय से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने महादेव का अपमान कर दिया। ब्रह्मा जी द्वारा अपमान किये जाने पर महादेव प्रलय के रूप में नजऱ आने लगे और उनका रद्र रूप देखकर तीनो लोक भयभीत होने लगा। भगवान आशुतोष के इसी रद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए।
ये है भैरवाष्टमी व्रत पूजा विधि शिव के इस भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके अलावा पितृ दोष दूर होता है। भैरव जी की उपासना करने वाले को भैरवाष्टमी के दिन बगैर नमक वाला व्रत रख कर प्रत्येक प्रहर में भैरवनाथ जी की षोड्षोपचार सहित पूजा व तेलाभिषेक करना चाहिए व उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। रात के समय जागरण करके माता पार्वती और भोलेशंकर की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए व भैरव उत्पत्ति की कथा सुनने से लाभ होता है। रात का आधा प्रहर यानी मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करने से इनका आशिर्वाद मिलता है।
Hindi News / Ratlam / कुंडली मे पितृदोष, तो सोमवार को करें यह उपाय, एक टोटके से खुश हो जाएंगे आपके पूर्वज