script#MP NAVRATRI- नवरात्रि में मां को चढ़ाएं ध्वज, पूरी होगी हर मनोकामना | Navratri Offer god flag, will be fulfilled wishes | Patrika News
रतलाम

#MP NAVRATRI- नवरात्रि में मां को चढ़ाएं ध्वज, पूरी होगी हर मनोकामना

वे लोग जिनकी जिंदगी में कुछ विशेष के लगातार प्रयास के बाद भी नहीं
मिलता, उनको मंदिर में ध्वज का दान करना चाहिए। इससे रुके काम पूर्ण होना
शुरू हो जाते है।

रतलामOct 05, 2016 / 12:08 pm

vikram ahirwar

ratlam news

ratlam news


रतलाम। नवरात्रि में मां के मंदिर में शिखर पर कलश के साथ ध्वज भी रहता है। केसरिया रंग का ध्वज जिंदगी में उत्साह, उल्लास व उमंग का प्रतिक होता है। सुबह सबसे पहले मंदिर के ध्वज को देखने से दिन के सभी काम पूर्ण होते है। ज्योतिषी ओशोप्रिया ने बताया कि वे लोग जिनकी जिंदगी में कुछ विशेष के लगातार प्रयास के बाद भी नहीं मिलता, उनको मंदिर में ध्वज का दान करना चाहिए। इससे रुके काम पूर्ण होना शुरू हो जाते है।

नवरात्रि में मां दूर्गा की पूजा के लिए शास्त्रों विभिन्न विध-विधानों का वर्णन किया गया है, लेकिन कई कथाओं में पूजा को सफ ल और पूर्ण बनाने के लिए मां को ध्वज अर्पित करने का वर्णन भी मिलता है। किसी भी देवी या देवता की पूजा में चढ़ाए जाने वाले ध्वज के बारे में मान्यता है कि इससे भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। विशेषकर नवरात्रि में देवी को ध्वज अर्पित करने वाले भक्तों को हर अवसर पर सफलता मिलती है। भक्तों का अनुष्ठान व्यर्थ नहीं जाता।

यह भी है एक मान्यता

नवरात्रि में देवी मां को नया ध्वज चढ़ाने के बारे में एक कथा यह भी है कि इन अत्यंत पवित्र नौ दिनों तक मां का सूक्ष्म रूप उनके ध्वज पर मौजूद रहता है। ऐसे में जो भक्त मंदिर में जाकर मां के दर्शन नहीं कर पाता उसे भक्ति भाव मात्र ध्वज देखने से ही दर्शन का लाभ मिलता है। ध्वज को विजय का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि नवरात्रि में मां को ध्वज चढ़ाने पर भक्त को हर शुभ काम में सफलता मिलती है। ध्वज का प्रयोग देवी देवताओं की पूजा के अलावा धार्मिक पहचान और राज्य या राष्ट्र की पहचान के लिए भी किया जाता है।

वैदिक काल से चलन

ध्वज या पताकाओं का चलन वैदिक काल से भी भारत में रहा है। एक लेख के अनुसारए प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में ध्वज के उपयोग का वर्णन इस प्रकार है-
अस्माकमिन्द्र: समृतेषु धव्जेष्वस्माकं
या इषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्मॉं
उ देवा अवता हवेषु।।

हर चिन्ह का है अपना महत्व

ध्वजों का उपयोग भगवान राम के जमाने त्रेता युग से लेकर महाभारत काल तक में मिलता है। कई कथाओं में ध्वजों के रंगों और चिन्हों का भी वर्णन किया गया है। कैकेय राजकुमारों की पताकाएं रक्तवर्णी थीं। ध्वजों के रंगों के अलावा उन पर मौजूद चिन्ह भी अलग-अलग होते थे जो किसी समुदाय व राज्य विशेष की शक्ति का प्रतीक हुआ करते थे। कथाओं के अनुसार शल्य के ध्वज पर हल से भूमि पर खींची गई रेखा का निशान था। जयद्रथ के रथ में लगे ध्वज में चांदी के वाराह का प्रतीक अंकित था। वहीं महाप्रतापी भीष्म के विशाल ध्वज पर पांच तारों के साथ ताड़ का वृक्ष था। अर्जुन के रथ पर लगे पताका में हनुमान जी अंकित हैं। इतना ही नहीं, रतलाम महाराज के ध्वज पर भगवान हनुमान बने हुए थे।

Hindi News / Ratlam / #MP NAVRATRI- नवरात्रि में मां को चढ़ाएं ध्वज, पूरी होगी हर मनोकामना

ट्रेंडिंग वीडियो