इसलिए आते हैं खरमोर अभयारण्य में खास किस्म की घांस होती है जो काफी ऊंची होती है। इन्हीं घास के बीच खरमोर नर और मादा प्रजनन के लिए आते हैं। ऊंची-ऊंची छलांग लगाते हुए ये प्रणय निवेदन करते हैं।
पांच हजार रुपए इनाम खरमोर पक्षी के प्रवास के लिए इन तीनों ही क्षेत्रों में अन्य गतिविधियां बहुत कम कर दी जाती है। किसी किसान को खरमोर दिखाई देता है तो वन विभाग उसे पांच हजार रुपए इनाम देता हैं।
ये हैं नहीं आने के कारण पर्यावरणविदों के अनुसार क्षेत्र में मानव और अन्य गतिविधियां काफी बढ़ जाने से खरमोर की प्रभावित हुए है। इनके आने का सिलसिला कम होता गया। अब तो लगभग आना ही बंद हो गए।
ये करना जरुरी 2017 में भारतीय वन्यजीव संस्थान की खरमोर पक्षी पर बनाई गई स्टेटस रिपोर्ट के सदस्य अजय गाडिक़र के अनुसार खरमोर के लिए वन कर्मचारी और वालेंटियर्स लगाने चाहिए। 80 के दशक में हुआ था घोषित
सैलाना क्षेत्र के खरमोर अभयारण की घोषणा पर्यावरणविद सालिम अली की पहल पर 80 के दशक हुई थी। पहली बार इस पक्षी के बारे में जानकारी जुटाई थी जो दुर्लभ प्रजाति का पाया गया।
पिछले सालों में काफी संख्या रही 2015 की बात करे तो इस साल जिले में वन अमले को 24 नर-मादा खरमोर मिले थे। इसके बाद संख्या में साल-दर-साल कमी आती गई। 2019 के बाद से एक भी नहीं आया।
तीन क्षेत्र हैं इनके लिए आरक्षित वन विभाग ने खरमोर पक्षी के लिए तीन क्षेत्र खरमोर अभयारण्य के नाम से आरक्षित कर रखे हैं। इनमें सैलाना की शिकारवाड़ी, शेरपुर और आंबा का क्षेत्र है। ये तीनों क्षेत्र पास-पास ही है।
रिपोर्ट के अनुसार ये कारण बढ़ती पवन चक्कियां, मानवजनित दबाव और स्थानीय किसानों का आक्रामक रवैय्या इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इनकी वजह से इस पक्षी ने इस परिक्षेत्र से दूरी बना ली है।
यह भी जरुरी सैलाना का अभ्यारण और इसके आसपास का क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन में आता है। अभ्यारण की सीमा से 10 किमी के क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधियां या पवन चक्कियों नहीं लग सकती है।
किस वर्ष कितने खरमौर आए 1996 09 1997 09 1998 09 1999 14 2000 31 2001 10 2002 09 2003 15 2004 07 2005 31
2006 28 2007 21 2008 38 2009 32 2010 19 2011 20 2012 33 2013 18 2014 16 2015 24 2016 17 2017 04
2018 05 2019 00 2020 00 2021 00 2022 00 (रिकार्ड वन विभाग के अनुसार)