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रतलाम

#Ratlam में इंतजार, हिमालय की तराई क्षेत्र से आते हैं जिले में खरमौर

विलुप्त प्रजाति का खरमोर सैलाना क्षेत्र से दूरदुर्लभ प्रवासी पक्षी की दस्तक का इंतजार, इस वर्ष अब तक एक भी खरमोर नहीं आया जिले में

रतलामAug 22, 2022 / 08:48 pm

Ashish Pathak

Kharmaur in the district comes from the foothills of the Himalayas

Kharmaur in the district comes from the foothills of the Himalayas

रतलाम. हिमालय के तराई क्षेत्र से केवल बरसात के सीजन में जिले के सैलाना, आंबा और शेरपुर के खरमौर अभयारण्य में केवल प्रजनन के लिए आने वाले दुर्लभ प्रजाति का पक्षी खरमोर का तीन सालों से इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। इस साल भी अब तक एक भी खरमोर ने दस्तक नहीं दी है। लगातार घटती इनकी संख्या ने वन अमले को चिंता में डाल दिया है। वन विभाग के रिकार्ड के अनुसार 2019 से खरमौर ने इस क्षेत्र से दूरी बना ली है जो संभवत: इस साल भी निरंतर बनी हुई है।
इसलिए आते हैं खरमोर

अभयारण्य में खास किस्म की घांस होती है जो काफी ऊंची होती है। इन्हीं घास के बीच खरमोर नर और मादा प्रजनन के लिए आते हैं। ऊंची-ऊंची छलांग लगाते हुए ये प्रणय निवेदन करते हैं।
पांच हजार रुपए इनाम

खरमोर पक्षी के प्रवास के लिए इन तीनों ही क्षेत्रों में अन्य गतिविधियां बहुत कम कर दी जाती है। किसी किसान को खरमोर दिखाई देता है तो वन विभाग उसे पांच हजार रुपए इनाम देता हैं।
ये हैं नहीं आने के कारण

पर्यावरणविदों के अनुसार क्षेत्र में मानव और अन्य गतिविधियां काफी बढ़ जाने से खरमोर की प्रभावित हुए है। इनके आने का सिलसिला कम होता गया। अब तो लगभग आना ही बंद हो गए।
ये करना जरुरी

2017 में भारतीय वन्यजीव संस्थान की खरमोर पक्षी पर बनाई गई स्टेटस रिपोर्ट के सदस्य अजय गाडिक़र के अनुसार खरमोर के लिए वन कर्मचारी और वालेंटियर्स लगाने चाहिए।

80 के दशक में हुआ था घोषित
सैलाना क्षेत्र के खरमोर अभयारण की घोषणा पर्यावरणविद सालिम अली की पहल पर 80 के दशक हुई थी। पहली बार इस पक्षी के बारे में जानकारी जुटाई थी जो दुर्लभ प्रजाति का पाया गया।
पिछले सालों में काफी संख्या रही

2015 की बात करे तो इस साल जिले में वन अमले को 24 नर-मादा खरमोर मिले थे। इसके बाद संख्या में साल-दर-साल कमी आती गई। 2019 के बाद से एक भी नहीं आया।
तीन क्षेत्र हैं इनके लिए आरक्षित

वन विभाग ने खरमोर पक्षी के लिए तीन क्षेत्र खरमोर अभयारण्य के नाम से आरक्षित कर रखे हैं। इनमें सैलाना की शिकारवाड़ी, शेरपुर और आंबा का क्षेत्र है। ये तीनों क्षेत्र पास-पास ही है।
रिपोर्ट के अनुसार ये कारण

बढ़ती पवन चक्कियां, मानवजनित दबाव और स्थानीय किसानों का आक्रामक रवैय्या इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इनकी वजह से इस पक्षी ने इस परिक्षेत्र से दूरी बना ली है।
यह भी जरुरी

सैलाना का अभ्यारण और इसके आसपास का क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन में आता है। अभ्यारण की सीमा से 10 किमी के क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधियां या पवन चक्कियों नहीं लग सकती है।
किस वर्ष कितने खरमौर आए

1996 09

1997 09

1998 09

1999 14

2000 31

2001 10

2002 09

2003 15

2004 07

2005 31
2006 28

2007 21

2008 38

2009 32

2010 19

2011 20

2012 33

2013 18

2014 16

2015 24

2016 17

2017 04
2018 05

2019 00

2020 00

2021 00

2022 00

(रिकार्ड वन विभाग के अनुसार)

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