अद्भुत संगठन क्षमता
नेताजी की संगठनात्मक क्षमता अद्भुत थी । 1941 में भारत से जर्मनी जाने के बाद वे 1943 में सिंगापुर गए तथा सेना में भर्ती करने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया। आज़ाद हिंद फ़ौज में हज़ारों सैनिक उनके नेतृत्व क्षमता का ही परिणाम थे। बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फ़लिीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए। वे उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया।
नारे जो बन गए मिसाल
नेताजी के तीन प्रमुख नारे उनकी पहचान बन गए। ’तुम मुझे ख़ून दो , मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ उनका सर्वाधिक लोकप्रिय नारा रहा । ’दिल्ली चलो’ का नारा भी नेताजी ने ही दिया था और ’जय हिंद’ का नारा भी नेताजी की पहचान बना। गांधी जी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता भी नेताजी ने ही संबोधित किया था।
जब रतलाम ने सुनी थी ओज वाणी
यह सुखद संयोग रहा कि 1939 में नेताजी रतलाम में कुछ समय के लिए रुके थे और रेलवे स्टेशन पर उन्होंने रतलाम वासियों को अपनी ओजवाणी से संबोधन भी किया था। नेताजी बहुत अच्छे अध्येता थे। मात्र 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की किताबें पढ़ ली थी। उनके जीवन पर इन पुस्तकों का प्रभाव बना रहा। अध्ययन और चिंतन ने उनके ज्ञान के स्तर को उच्च शिखर पर ला दिया था। वे पद और प्रभाव के आभामंडल में घिरने वाले व्यक्ति नहीं थे। यही कारण था कि 1920 में उन्होंने इंग्लैंड में सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन राष्ट्र प्रेम उन्हें 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन की ओर ले आया।
हम क्या सीखें
नेताजी को जन्म के सवा सौ वर्षों के बाद भी यदि आज हम याद कर रहे हैं तो उसके कुछ ख़ास कारण हैं । उनका व्यक्तित्व विशाल था और कृतित्व अद्भुत। नेताजी के जीवन से आज की पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है। पहली सीख : पहली महत्वपूर्ण सीख ये कि यह कि व्यक्ति जो कुछ भी करें वह न तो किसी के दबाव में करे और न ही किसी के प्रभाव में। सदैव अपने स्वभाव से कार्य करना चाहिए।
दूसरी सीख: दूसरी महत्वपूर्ण सीख ये कि नेताजी के जीवन से यह मिलती है कि हमें अपने व्यवहार में शिष्टाचार, वाणी में मधुरता और व्यक्तित्व में निष्ठा को शामिल करना चाहिए। तीसरी सीख: तीसरी महत्वपूर्ण सीख यह कि सुविधाओं की सेज तो हर घड़ी सामने खड़ी होती है लेकिन उसे छोड़कर संघर्ष की सड़क पर क़दम रखने का साहस बहुत ज़रूरी है। चौथी और महत्वपूर्ण सीख है विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं और अपरिचित लोगों के बीच भी अपनी साख कायम करते हुए लोगों को एकजुट करना और उनका नेतृत्व करने की क्षमता स्वयं में विकसित करना।
ये कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो नेताजी के जीवन से हमें सीखने को मिलती हैं। बेशक नेताजी के शौर्य और साहस को यह देश ही नहीं दुनिया सलाम करती है लेकिन हम यदि नेताजी के बताए मार्ग पर आगे बढ़ सके तो नेताजी की आत्मा हमें सलाम करेगी और गर्व से कह सकेगी ’जय हिंद’ !
-पत्रिका गेस्ट राइटर- आशीष दशोत्तर, रतलाम, लेखक प्रख्यात साहित्यकार व शिक्षक है। ये भी पढ़ें: गुजरात जाते समय 1939 में रतलाम आए थे ‘बोस’, भीड़ इतनी कि खत्म हो गए थे प्लेटफॉर्म टिकट