अधिकारियों से ज्यादा लिपिकों के चक्कर
चाहे सातवां वेतनमान हो या किसी अन्य तरह का लाभ जो कर्मचारियों को मिलना होता है उसके लिए अधिकारियों से ज्यादा लिपिकों के चक्कर काटना पड़ते हैं। संस्थाओं में कार्यरत लिपिक अपने हित लाभ के लिए ऐसे प्रकरणों को अटका कर रखते हैं और जब उनके हित पूरे हो जाते हैं तो उन कर्मचारियों का काम पूरा हो जाता है। शिक्षा और जनजातीय कार्य विभाग में ऐसे संकुलों सबसे ज्यादा दिक्कत इन्हीं लिपिकों से सामने आ रही है। लिपिकों की हालत यह है कि ये एक ही संकुल में वर्षों से जमे हुए हैं और जिले में बैठे अधिकारी भी इन्हें हटाने में अब तक नाकाम रहे हैं।
अध्यापक संवर्ग को नियमित करने के बाद उन्हें सरकार ने छटे वेतनमान का लाभ देने की घोषणा कर दी थी। इस समय जिले में करीब तीन हजार से ज्यादा अध्यापक हैं इस दायरे में आ रहे हैं। शिक्षा विभाग के अध्यापकों को छटे वेतनमान का लाभ मिलना शुरू हो गया है किंतु जनजातीय कार्य विभाग में अभी भी नहीं मिला है। साथ ही जिन्हें इसका लाभ मिल रहा है उन्हें एरियर के लिए भटकना रड़ रहा है। दोनों विभागों में दो हजार कर्मचारी हैं जिन्हें एरियर नहीं मिला है। इन्हें भी अब सरकार के नए आदेश से जल्द एरियर मिलने की आस जागी है।
नियमित शिक्षकों सातवें वेतनमान और अध्यापकों को छटे वेतनमान के आदेश जारी होने के बाद भी राशि नहीं मिली है। शिक्षा और जनजातीय कार्य विभाग में एक जैसी स्थिति है। अधिकारी तो चाहते हैं कि जल्द राशि मिले लेकिन वर्षों से एक ही जगह जमें लिपिकों के अडिय़ल रवैये से देरी हो रही है। अब सरकार ने ३१ मई तक का समय दिया है।
सर्वेश कुमार माथुर, जिलाध्यक्ष मप्र शिक्षक संघ, रतलाम