रतलाम रेल मंडल मुख्यालय स्थित रेलवे अस्पताल में तीन वर्ष पूर्व खरीदी गई सोनोग्राफी मशीन का उपयोग नहीं हो रहा है। अब इसकी जो मियाद अवधि थी वो भी निकल गई है। रेलवे अस्पताल में सोनोग्राफी करने के लिए अब तक रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं हो पाई है। इससे स्थानीय से लेकर बाहर से आने वाले रेल कर्मचारी व उनके परिजन को इस कार्य के लिए अन्य स्थान पर जाना होता है। अधिक परेशानी तो मुख्यालय से बाहर से आने वाले मरीज होते है। नियुक्ति नहीं होने की वजह किसी का इसके लिए निकली वैंकेसी में रुचि नहीं लेना है।
योग्य की तलाश जारी
बता दे कि पश्चिम रेलवे ने करीब तीन वर्ष पूर्व मंडल मुख्यालय को सोनोग्राफी मशीन खरीदकर दी। इसका उद्देश्य ये था कि मरीजों को बेहतर उपचार में मदद मिल सके। इसके लिए जब ये मशीन मंडल को मिली तो इसके बाद अलग से इसके संचालन के लिए कक्ष बनाया गया। कक्ष बनने के बाद मशीन को तो लगा दिया गया, लेकिन इस मशीन को चलाने वाले योग्य व्यक्ति को मंडल रेलवे अस्पताल नियुक्त नहीं कर पाया।
टेंडर के भरोसे चल रहा काम करीब 8 लाख रुपए की कीमत वाली मशीन होने के बाद भी रेलवे को सोनोग्राफी करवाने के लिए अपने मरीजों को रेलवे अस्पताल से बाहर ही भेजना पड़ रहा है। इसकी एक बड़ी वजह अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक की नियुक्ति नहीं हो पाई है। अब स्थिति ये है कि मंडल मुख्यालय हो या बाहर से आने वाले मरीज इनको सोनोग्राफ के लिए रेलवे अस्पताल के बाहर चयनीत स्थान पर जाने की मजबूरी रहती है।
इतने मरीज जाते है बाहर रेलवे अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार स्त्री पुरुष मरीज मिलकर एक माह में करीब 500 से 575 मरीज को सोनोग्राफी करवाई जाती है। मंडल मुख्यालय पर रहने वाले मरीज को ठीक है, लेकिन उनको अधिक परेशानी आती है जो मंडल मुख्यालय के बाहर के स्टेशन से आते है। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि सोनोग्राफी के लिए रेलवे द्वारा चयनीत स्थान अधिकतर बाहरी मरीजों को नहीं पता रहता है।
अनेक बार सूचना जारी की ये बात सही है कि अस्पताल में सोनोग्राफी की मशीन है, लेकिन समस्या ये है कि कई बार सूचना जारी करने बाद भी इसको चलाने की जितनी योग्यता चाहिए, उस स्तर के केंडिडेट कोई आना नहीं चाहता। हमारा प्रयास रहता है कि किसी मरीज को कोई समस्या नहीं हो, फिर भी कोई परेशानी हो तो वे सीधे संपर्क कर सकते है।
– डॉ. एके मालवीय, रेलवे अस्पताल अधीक्षक