कुछ साल पहले तक रबी और खरीफ की दो परंपरागत फसलों पर निर्भर किसान किसी एक भी फसल के कमजोर होने पर आर्थिक संकट में फंस जाता था, लेकिन अब किसान ने इससे उबरने का रास्ता निकाल लिया है। अब जिले में किसान गर्मियों में मूंग की तीसरी फसल लेकर अपने को मजबूत कर रहा है। बीते तीन-चार सालों में जिले में मूंग का रकबा तेजी से बढ़ा है। विशेषकर बीते दो सालों में जब कोरोना संक्रमण के चलते गर्मियों में लॉकडाउन रहा तब किसानों ने इस संकट काल का भी पूरा फायदा उठाया और खाली खेतों में मूंग की फसल लगाई, जिससे अच्छा खासा मुनाफा मिला।
इस साल बढ़ेगा मूंग का रकबा
इस साल मूंग का रकबा और बढऩे की पूरी संभावना है। कृषि विभाग के अनुसार बीते साल जिले में 47 हजार 638 किसानों ने 87 हजार हैक्टेयर में मूंग की खेती की थी, जिससे 44 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था।
90 करोड़ की इंकम
इससे किसानों को 90 करोड़ से अधिक की आय हुई थी। 60 दिन में तैयार होने वाली फसल और वह भी तीसरी फसल के रूप में हो तो इससे बेहतर क्या हो सकता है, यही कारण है कि इस साल मूंग का रकबा बढ़कर एक लाख 10 हजार हैक्टेयर तक पहुंच सकता है।
जिन किसानों की गेहूं की फसल कट चुकी है, उन्होंने मूंग की बोवनी शुरू कर दी है। हलांकि गेहूं की देरी से बोवनी करने वाले किसानों को मूंग की बोवनी करने में देरी होगी। कृषि विभाग के अनुसार गर्मियों में मूंग की बोवनी का समय 20 अप्रेल तक सबसे उचित होता है। मगर किसान 30 अप्रेल तक बोवनी करते हैं। ऐसे में देरी से बोवनी वाली फसलों को बारिश से खतरा रहता है। बीते साल भी सिलवानी क्षेत्र के किसानों की मूंग की फसल समय से पहले आए मानसून के कारण बिगड़ गई थी, कई किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था। बीते साल के आंकड़ों के अनुसार जिले में बाड़ी, औबेदुल्लागंज, उदयपुरा, सिलवनी आदि क्षेत्रों में मूंग की खेती अधिक की जाती है। इस बार भी इन तहसील क्षेत्रों में मूंग की खेती अधिक की जा रही है। हालांकि अन्य तहसीलों में भी किसानों की रुचि बढ़ी है।
कम लागत, दाम अच्छा
मूंग की फसल महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसमें 24 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है व कम अवधि 60-65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन 12 से 15 ङ्क्षक्वटल प्रति हैक्टेयर तक होता है। मूंग की फसल में लागत कम आती है व इसका दाम भी अच्छा मिलता है। गत वर्ष मूंग का समर्थन 7196 रुपए प्रति ङ्क्षक्वटल था।
उत्पादन क्षमता बढ़ाता है, मिट्टी में भी होता सुधार
खेती में फसल चक्र का उपयोग किया जाता है, ऐसी स्थिति में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती से जमीन में जीवाष्म की मात्रा बढ़ती है व मिट्टी में सुधार आता है। दलहनी फसलों की जड़ों में गांठें होती हैं, जो वायुमंडल में उपस्थित 79त्न नाइट्रोजन को स्थिर कर मिट्टी में मिलाती हैं। मूंग लगाने से मिट्टी में 20 से 30 किग्रा प्रति हैक्टेयर नाइट्रोजन की वृद्धि होती है।
ये है मूंग की उन्नत उत्पादन तकनीक
मिट्टी – मध्यम दोमट, व गहरी काली मिट्टी
उन्नत किस्म- पीडीएम-1३9 (सम्राट), आईपीएम-205-7 (विराट), आईपीएम-410-३ (शिखा), एमएच-421
बीज दर – 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर।
उपयुक्त समय- 20 मार्च से 20 अप्रेल।
बीजोपचार- कार्बेन्डाजिम, मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीज। पीला मोजेक से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 48 एफ.एस 1.25 मिली प्रति किलो बीज।
खरपतवार नियंत्रण – पेंडामिथिलीन ३0 ई.सी. बोवनी के तुरंत बाद व अंकुरण के पूर्व या इमिजाथापायर 750 मिली प्रति हैक्टेयर
खाद व उर्वरक – 20:40:20 नत्रजन: स्फुर:पोटाश