वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस समय असम में बारिश शुरू हो गई है, वहीं छत्तीसगढ़ में गर्मी का मौसम है। इस मौसम में उन्हें लाने में परेशानी होगी। बारिश के बाद विशेषज्ञों के साथ टीम को भेजा जाएगा। उनकी निगरानी में 5 वन भैंसों को लाने की योजना बनाई गई है। वहां से लाए जाने वाले 4 मादा और 1 नर वनभैंसों का चयन कर लिया गया है।
11 से घटकर अभी 9 वनभैंसा
2007 की गणना के अनुसार वनभैंसों का कुनबा 11 से घटकर 7 हुआ हो गया था। इसमें उदंती में रामू, जुगाड़ू, कालिया के साथ रेस्क्यू सेंटर में आठ वनभैंस रखे गए थे। इनमें से कालिया 2013 में, श्यामू और जुगाड़ू 2018-19 में मृत पाए गए थे। जबकी रामू की 5 वर्ष से कोई खबर नहीं है। उदंती रेस्क्यू सेंटर में रखे गए वनभैंसों को लेकर भी विवाद है। स्थानीय लोग आशा को पालतू भैंसा मानते हैं। असम से 2020 में लाए गए 2 वनभैंसों (एक नर और एक मादा) को बारनवापारा स्थित बाड़े में रखकर स्थानीय मौसम के अनुकुल ढाला जा रहा है। इन सभी को मिलाकर वनभैंसों की संख्या इस समय 9 हो गई है।
असम वन विभाग के अधिकारियों ने वनभैंस देने पर सहमति जताई है। सितंबर में इसे छत्तीसगढ़ वन विभाग को देने का मौखिक आश्वासन दिया है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ के एकमात्र गरियाबंद जिले के मैनपुर उदंती अभयारण्य में शुद्ध प्रजाति के वन भैंसा पाये जाते हैं, जिनकी प्रजाति विलुप्ति होने की कगार पर है। वहीं आने वाली पीढ़ी को राजकीय पशु वन भैसा के कंकाल से उनके बारे में जानकारी मिल सकेगी।
साल 2001 में घोषित किया गया था राजकीय पशु
प्रदेश में लगातार कम होती वन भैंसों की संख्या को देखते हुए साल 2001 में इसे राजकीय पशु घोषित किया गया। उस समय प्रदेश में वनभैंसों की संख्या करीब 80 थी, लेकिन घटत-घटते सिमटती चली गई। 20वीं सदी के शुरुआत में वन भैंसा की प्रजाति अमरकंटक से लेकर बस्तर तक में बहुत अधिक संख्या में पाई जाती थी। वर्तमान में वनभैंसा प्रमुखत: दंतेवाड़ा जिले के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान और उदंती अभारण्य में ही रह गया है।