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अस्पताल के ट्रामा सेंटर में भर्ती किया जाता है। फिर डीकेएस रिफर किया जाता है। अगर किसी मरीज को ब्रेन संबंधी बीमारी होने की पुष्टि पहले से है तो वे सीधे डीकेएस अस्पताल भी जा सकते हैं। बेड तो कम पड़ ही रहे हैं, वेंटीलेटर फुल होने के कारण भी समस्या बढ़ गई है। सिर में चोट वाले मरीज इमरजेंसी में आते हैं। ऐसे में 6 घंटे के भीतर इनका इलाज शुरू करना आदर्श समय माना जाता है।
उक्त समय में आने वाले
मरीजों की जान बचाने में मदद मिलती है। 5 माह पहले बेड की समस्या को दूर करने के लिए दोनों अस्पतालों के अधीक्षकों व डॉक्टरों की बैठक भी हुई थी। इसमें सबसे बड़ी समस्या बेड बढ़ाने के लिए जगह की कमी सामने आई। अधिकारी विभाग का एक्सटेंशन करने की योजना बना रहे हैं। ताकि इस विभाग में केवल न्यूरो सर्जरी व न्यूरोलॉजी के मरीजों का इलाज हो सके।
वीकेंड में रोड एक्सीडेंट के मामले हो रहे ज्यादा
वीकेेंड में लोगों के बाहर आने-जाने के कारण सामान्यत: शनिवार व रविवार की रात सड़क दुर्घटना में घायल वाले केस ज्यादा आते हैं। डॉक्टरों के अनुसार दोनों दिनों में औसतन 10 या इससे ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं। इसमें हेड इंजूरी वाले केस भी होते हैं। दरअसल राजधानी के अलावा आसपास व पूरे प्रदेश में सड़क दुर्घटना में रोजाना सैकड़ों लोग गंभीर हो रहे हैं। कई मामलों में हेड इंजुरी के केस कॉमन है। सिर पर चोट या ब्रेन की बीमारी संबंधी मरीजों का इलाज अस्पताल में होता है। इसमें ज्यादातर मरीजों को न्यूरो सर्जरी विभाग में ऑपरेशन करने की जरूरत होती है।
तत्काल मिल रहा इलाज
डीकेएस का न्यूरो सर्जरी विभाग सुपर स्पेशलिटी वाले विभागों में सबसे बड़ा सेटअप वाला विभाग है। एचओडी समेत 8 न्यूरो सर्जन सेवाएं दे रहे हैं। यही नही दो एमसीएच की सीट है। यानी कुल 6 एमसीएच छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं, जो मरीजों के इलाज से लेकर सर्जरी में मदद करते हैं। एमसीएच के छात्र जूनियर डॉक्टर की तरह होते हैं, जो कंसल्टेंट डॉक्टरों की मदद करते हैं। प्रदेश में चार साल पहले एमसीएच की सीट शुरू हुई थी। तीन बैच के छात्र पढ़ाई कर निकल चुके हैं। यही नहीं 26 अक्टूबर को हैल्थ साइंस विवि के दीक्षांत समारोह में एमसीएच के छात्रों को डिग्री भी प्रदान की गई थी।