रामायण में आपने कितने किरदार किए और कौन सा चुनौतीपूर्ण रहा?
असलम खान- रामायण में मैंने कई किरदार किए हैं लेकिन मुख्य किरदार था समुद्र देव का। हालांकि मैंने 10 रोल निभाए हैं लेकिन मेन रोल समुद्र देवता का रहा। इसे दर्शकों ने काफी सराहा। मुझे किसी भी भूमिका में कोई कठिनाई नहीं आई। न तो शुद्ध हिंदी चुनौती बनी और न प्रोनांसेशन।
तीन दशक बाद जो शोहरत मिल रही है उस पर क्या कहेंगे?
असलम खान: मीडिया और सोशल मीडिया हमारे जमाने में होता तो मैं उसी वक्त वायरल हो जाता। मेरी जिंदगी कुछ अलग ही होती और मैं शायद आज इंडस्ट्रीज में कुछ बेहतर मुकाम में होता।
आप कम बैक की सोच रहे हैं?
असलम खान- जब मैं जय माता की के सेट पर मैं दुर्वाश ऋषि को रोल प्ले कर रहा था, तो उसके डायरेक्टर थे पुनित इस्सर। जो महाभारत में दुर्योधन का कैरेक्टर किया था। दुर्वाशा ऋषि का पावरफुल डायलाग था जिसमें एक राजा को श्राप देना था। मेरी एक्टिंग से खुश होकर पुनितजी ने गले लगाया और कहा कि जब भी फिल्म बनाऊंगा तुम्हारा एक कैरेक्टर फिक्स रहेगा। ये मेरे लिए बड़ी बात थी। उनकी पहली फिल्म सलमान खान को लेकर थी गर्व। मैं उनसे मिला। वे मुझे हमेशा यही कहते कि जल्द ही तुम्हारा कैरेक्टर आएगा। लेकिन बाद में जब मैं उनसे मिला तो वे कहने लगे कि यार असलम मैंने वह रोल किसी और से करवा लिया। मेरी आस टूट गई। उसी वक्त मुझे समझ में आया कि इंडस्ट्री में लाइफ सिक्योर नहीं है। अगर उस वक्त पुनितजी ने मुझे रोल दिया होता तो सलमान खान के साथ नजर आता तो शायद मेरी लाइफ बदल जाती। मैं अभी इसी उम्मीद में हूं कि सलमानजी के पास मेरी यह खबर जाए और कोई कैरेक्टर उनके साथ करने का अवसर मिले।
रामानंद सागर के साथ कैसा अनुभव रहा?
असलम खान- रामायण समुद्र देवता का प्ले उन्होंने सेट पर आकर ही किया। इसके पीछे भी एक कहानी ये है कि जिसे यह रोल करना था वो उस वक्त आया नहीं था तो मुझे दिया गया। वो कैरेक्ट स्पेशल इफेक्ट में था। रविकांत जी जो स्पेशल इफेक्ट के बहुत बड़े डायरेक्टर थे। ये सीन 5 पेज का था। उन्होंने मुझे रिजेक्ट कर दिया। पापाजी (रामानंद सागर को इसी नाम से पुकारते थे सब) ने पहले ही फाइनल कर दिया था कि अगर ये कैरेक्टर नहीं आता है तो हम असलम से कराएंगे। उन्होंने मुझे पहले ही स्क्रिप्ट देकर रखी थी। सेट पर रविकांत जी ने मना कर दिया तो पापाजी आए और शूट करने लगे। टेक लेने के बाद सब शांत। सभी लोग देख रहे थे। कैमरामैन अजित नायर ने कहा कि आज पापाजी ने इंडस्ट्री को एक और आर्टिस्ट दे दिया।
मुंबई कैसे जाना हुआ?
असलम खान- मैं न तो इंडस्ट्रीज का था और न कभी चाहत थी कि एक्टर बनूंगा। स्कूल में गाने जरूर गाया करता था। लेकिन जब इंडस्ट्रीज पहुंचा तो उत्साह बढ़ गया। ऊंचाई तक जाकर क्विट इसलिए नहीं किया कि मैं हार गया। उस वक्त भी कोई अच्छा किरदार मिल जाता तो शायद मैं आगे बढ़ जाता। बच्चे बड़ी क्लास में पढ़ रहे थे और आर्थिक दिक्कतें शुरू हो चुकीं थीं। मैंने वहां से ध्यान हटाकर एकाउंटेंट की जॉब की।
आपको पहला और आखिरी किरदार कौन सा रहा?
असलम खान- मेरा पहला किरदार विक्रम और बेताल में था। उस वक्त मुझे कुछ भी नहीं आता था। मेरे मित्र मुझे लेकर गए थे। उसमें एक दरबारी का प्ले था जिसमें दीपिका जी भी थीं। वे राजकुमारी थीं। मुझे उन्हें पकड़कर राजदरबार ले जाना था। उस वक्त दरबारी के तौर में नए चेहरे की तलाश थी। मुझे मौका मिला। प्रेम सागर ने एक छोटा सा डायलाग दिया कि चलो महाराज ने बुलाया है। मैंने जोर से कहा। तो वे मुझे प्यार से समझाए कि जोर से नहीं बोलना है। पूरा सीन एक्सप्लेन करते हुए बताया कि किस तरह बोलना है। फस्र्ट टेक में सीन ओके हुआ और अभिनय का सिलसिला निकल पड़ा। आखिरी रोल मैंने ये हवाएं में किया। उसमें एक बाबा का कैरेक्टर था जो हक अल्लाह कहता था। चूंकि उस टाइम दूरदर्शन देखने वाले कम थे। अगर किसी और चैनल में सीरियल का प्रसारण हुआ होता तो शायद मैं लाइट में जरूर आता। रवि किशन के अपोजिट विलेन का यह आखिरी कैरेक्टर था।
झांसी आपकी जन्मस्थली है’ आप मुंबई कैसे पहुंचे?
असलम खान- मेरी पैदाइश जरूर झांसी की है। मेरे फादर रेलवे में जॉब करते थे। मैं एक या सवा महीने का था जब हम मुंबई आ गए। मेरी पूरी परवरिश और पढ़ाई मुंबई में ही हुई। मेरी फैमिली में पत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी है। बेटा एक लॉजिस्टिक कंपनी में जॉब के लिए ट्रेनिंग में है और बेटी नोएडा में जीएल बजाज कॉलेज है वहां पढ़ाई कर रही है, उसका कैंपस सेलेक्शन हो चुका है। वर्चुसा कंपनी में उसका चयन हो गया है। ट्रेनिंग का तीसरा महीना चल रहा है।
मैं इस वक्त मुंबई में हूं। लॉकडाउरन में फंसा हूं। मैं परिवार के साथ अपनी मम्मी से मिलने आया था। लौटने वाले दिन ही लॉकडाउन लागू हो गया और रिजर्वेशन कैंसल होते चले गए। डेढ़ महीने से यही हूं।