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मेले में लोकखेल होगा आकर्षण का केंद्र
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ शासन धर्मस्व एवं पर्यटन विभाग एवं स्थानीय आयोजन समिति के सहयोग से राजीम माघी पुन्नी मेला का आयोजन किया जाता है। बेहतर परिवर्तन के साथ धार्मिक भावनाओं के अनुरूप राजिम मेले में इस वर्ष छत्तीसगढ़ की पारंपरकि लोकखेल जैसे कबड्डी, खो-खो, फुगड़ी, जलेबी दौड़, भौरा के साथ अन्य लोकखेलों को प्रोत्साहन देने के लिए सड़क के किनारे अलग स्थान चिन्हित किया जा रहा है। कई स्थानों में राउत नाचा, पंथी नृत्य, जसगीत, रामसत्ता, भजन-कीर्तन आदि की भी प्रस्तुति दी जाएगी।
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इस-इस वर्ष में बदल गया मेले का नाम
1. वर्ष 2001-03 में जब कांग्रेस की सरकार थी तो राजिम मेले को ‘राजीव लोचन महोत्सव’ के रूप में मनाया जाता था।
2. वर्ष 2003-18 में जब भाजपा की सरकार थी तो ‘कुम्भ मेला’ के रूप में मनाया जाता रहा था। वैसे छत्तीसगढ़ में कुंभ मेले की शुरुआत 2005 से आरंभ हुई थी।
3. वर्ष 2018-20 में अब कांग्रेस की सरकार है तब फिर मेले का नाम परिवर्तन कर ‘राजिम माघी पुन्नी मेला’ महोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
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देशभर के लाखों साधू-संतों और श्रद्धालुओं का होगा जमावड़ा
राजिम माघी पुन्नी मेला में देशभर से साधू-संतो का आगमन होता है, प्रतिवर्ष हजारों नागा साधू, संत मेले में पहुंचकर त्रिवेणी संगम में आस्था की डूबकी लगाते हैं। प्रतिवर्ष होने वाले इस मेला में देशभर से लाखों श्रद्धालु भगवान श्री राजीव लोचन और श्री कुलेश्वरनाथ महादेव जी के दर्शन कर पुण्य मनोकामना प्राप्त करते हैं। लोगों में मान्यता है की भनवान जगन्नाथपुरी जी की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तक भगवान श्री राजीव लोचन तथा श्री कुलेश्वरनाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते, राजिम माघी पुन्नी मेला का छत्तीसगढ़ में अपना एक विशेष महत्व है।
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लोगों की सहुलियत के लिए बनाई जाती है अस्थायी पुल
राजिम मेले की एक विशेषता यह भी है कि यह महानदी के किनारे और उसके सूखे हुए रेतीले भाग पर लगता है। जगह जगह पानी भरे गड्डे और नदी की पतली धाराएं मेले का अंग होती हैं। इन्ही धाराओं पर बने अस्थाई पुल से हजारों लोग राजीव लोचन मंदिर से कुलेश्वर महादेव मंदिर को आते-जाते हैं। तरह-तरह के सामानों की दुकानें, सरकारी विभागों की प्रदर्शनियां एवं खेल-तमाशों के बीच एक ओर सत्संग तो दूसरी ओर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहते हैं।
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इस तरह पड़ा ‘राजीव लोचन’ का नाम
राजिम नगरी के नामकरण के संबंध में जनश्रुति के अनुसार राजा जगतपाल इस क्षेत्र पर राज कर रहे थे तभी कांकेर के कंडरा राजा ने इस मंदिर के दर्शन किए और उसके मन में लोभ जागा कि यह मूर्ति तो उसके राज्य में स्थापित होनी चाहिए। वह सेना की सहायता से इस मूर्ति को बलपूर्वक ले चला। मूर्ति को एक नाव में रखकर वह महानदी के जलमार्ग से कांकेर रवाना हुआ पर धमतरी के पास रूद्री गांव के समीप नाव डूब गई और मूर्ति शिला में बदल गई। डूबी नाव वर्तमान राजिम में महानदी के बीच में स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर की सीढ़ी से आ लगी। राजिम नामक तेलिन महिला को यहां नदी में विष्णु की अधबनी मूर्ति मिली जिसे उसने अपने पास रख लिया। इसी समय रत्नपुर के राजा वीरवल जयपाल को स्वप्न आया, फलस्वरूप उसने एक विशाल मंदिर बनवाया। राजा ने तेलिन से मंदिर में स्थापना हेतु विष्णु मूर्ती देने का अनुरोध किया, तेलिन ने राजा को इस शर्त पर मूर्ति दी कि भगवान के साथ उनका भी नाम जोड़ा जाय। इस कारण इस मंदिर का नाम राजिमलोचन पड़ा, जो कालांतर में राजीव लोचन कहलाने लगा। मंदिर परिसर में आज भी एक स्थान राजिम के लिए सुरक्षित है।
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भगवान राजीव लोचन का श्रृंगार दिन में तीन बार किया जाता है
पकी हुई ईंटो से बने इस राजीव लोचन मंदिर के चारों कोण में श्री वराह अवतार, वामन अवतार, नृसिंह अवतार तथा बद्रीनाथ का स्थान है। गर्भगृह में विष्णु की श्यामवर्णी चतुर्भुज मूर्ति है जिनके हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म है। बारह खंबों से सुसज्जित महामंडप के प्रत्येक स्तम्भ पर सुन्दर मूर्तियां उत्कीर्ण की गई हैं। यहां राजीव लोचन की आदमकद प्रतिमा सुशोभित हैं। उनके सर पर मुकुट, कर्ण में कुंडल, गले में कौस्तुभ मणि के हार, हृदय पर भृगुलता के चिह्नांकित, देह में जनेऊ, बाजूबंद, कड़ा व कटि पर करधनी बनाई गई है। इनका श्रृंगार दिन में तीन बार बाल्यकाल, युवा फिर प्रौढ़ अवस्था में समयानुसार बदलता रहता है।