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अस्पताल में मरीजों की मौत पर ऑडिट केवल औपचारिकता निभाने के लिए नहीं की जा रही है, लेकिन हो ऐसा रहा है। अस्पताल अधीक्षक डॉ. एसबीएस नेताम के कार्यकाल के दौरान डेथ ऑडिट हुआ। इसमें कमेटी ने कभी मरीजों को देरी से इलाज मिलने का कारण जानबूझकर शामिल नहीं किया। जबकि असलियत यही है कि कई मामलों में मरीजों को तत्काल इलाज नहीं मिलता।
ये केवल इमरजेंसी में नहीं, बल्कि वार्डों में भी होता है। यही नहीं, कई मीटिंग में पीजी के अलावा सहायक अधीक्षक व सीएमओ ही शामिल रहे। कोई भी कंसल्टेंट डॉक्टर मीटिंग में शामिल नहीं होते रहे। इसमें क्या ऑडिट होगा, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। नेहरू मेडिकल कॉलेज से संबद्ध आंबेडकर अस्पताल में गुरुवार को सीपीसी की बैठक हुई। टेलीमेडिसिन हाल में हुई बैठक में सीएमई किरण कौशल भी वर्चुअल शामिल हुईं। पत्रिका 14 दिसंबर के अंक में इलाज के दौरान गंभीर मरीजों की होने वाली मौतों पर होगी स्टडी शीर्षक से खबर प्रकाशित कर चुकी है।
ऑडिट के लिए 9 सदस्यीय टीम का गठन
गंभीर मरीजों की होने वाली मौतों पर स्टडी के लिए 9 सदस्यीय टीम बनाई गई है। इसमें कार्डियोलॉजी, पैथोलॉजी, क्रिटिकल केयर, एनीस्थीसिया, ऑब्स एंड गायनी, मेडिसिन, फोरेंसिक मेडिसिन, एनाटॉमी, सर्जरी के डॉक्टर शामिल हैं। कमेटी की मीटिंग में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बाकी 9 मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के संबंधित विभाग के डॉक्टर भी जुड़ेंगे। पीजी छात्र भी सेमिनार में शामिल होंगे। वे केस के संबंध में सवाल भी पूछ सकेंगे। सवाल का जवाब कंसल्टेंट डॉक्टर देंगे। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने लर्निंग शेयरिंग के लिए टेली मेडिसिन की व्यवस्था करने को भी कहा था।
मेडिकल एजुकेशन बेहतर करना उद्देश्य, लेकिन प्रबंधन गंभीर नहीं
मेडिकल एजुकेशन की क्वालिटी बेहतर व अपग्रेड करने के लिए संचालनालय ने क्लीनिको पैथोलॉजिकल कोरिलेशन (सीपीसी) कमेटी का गठन किया है। कमेटी एक्सपीरिएंस शेयरिंग लर्निंग (एसईएल) कर वीसी के माध्यम से इलाज को बेहतर करने के लिए सुझाव देगी। कमेटी हर सप्ताह मेडिसिन व सर्जरी विभाग के दो-दो केस चुनेंगे। ये ऐसे केस होगा, जो लर्निंग शेयरिंग के लिए बेहतर होगा। ताकि इससे पीजी के साथ दूसरे मेडिकल कॉलेजों के कंसल्टेंट डॉक्टरों को इलाज के लिए सीखने का अवसर मिले। ऐसे केस लिए जाएंगे, जो गंभीर हो। सोमवार सुबह से रविवार शाम तक मृत मरीजों की फाइल एकत्रित कर दो केस का चयन किया जाएगा। मंगलवार को एचओडी केस का चयन कर सीपीसी को देगा। बुधवार को सीपीसी केस की स्क्रूटिनी कर चयन करेंगे। गुरुवार को केस के लिए लर्निंग शेयरिंग के लिए सेमीनार का आयोजन होगा।
जूनियर डॉक्टर तक को नहीं मिलते ऑक्सीजन सिलेंडर और स्ट्रेचर
हाल में सीसीयू में भर्ती एक मरीज के इलाज के दौरान पत्रिका रिपोर्टर ने देखा कि जूनियर डॉक्टर भी ऑक्सीजन सिलेंडर व स्ट्रेचर के लिए चक्कर लगा रहे हैं। यहां भर्ती मरीज केवल कंसल्टेंट डॉक्टर व पीजी के भरोसे हैं। यहां न स्टाफ नर्स नजर आता है और न अन्य स्टाफ। ऐसे में अगर मरीज को सीटी स्कैन कराने ले जाना है तो जूडो भी ऑक्सीजन सिलेंडर व स्ट्रेचर के लिए चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं। दरअसल, ये गंभीर मामला है। ये मरीज सीसीयू में भर्ती तो रहते हैं, लेकिन सीसीयू का कोई डॉक्टर मरीजों को झांकने तक नहीं आता। ऐसे में मरीजों का क्या हाल होता होगा, सोचा जा सकता है। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि मरीजों को झांकने नहीं आने में कुछ कंसल्टेंट डॉक्टरों का ईगो भारी पड़ रहा है।
अस्पताल अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने कहा कि इसके माध्यम से मरीजों के संपूर्ण इलाज के दौरान उसके क्लीनिकल एवं पैथोलॉजिकल पहलुओं पर चर्चा की जाती है। एनीस्थीसिया विभाग की प्रोफेसर डॉ. जया लालवानी ने कहा कि मरीजों के इलाज में कहां चूक हुई, सीपीसी का मुख्य उद्देश्य है। विभाग की जिम्मेदारी भी तय की जाती है। कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष व मीटिंग के अध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने कहा कि कई बार मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करवाकर देरी से गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचते हैं।
पैथोलॉजी विभाग की डॉ. राबिया परवीन सिद्दीकी ने कहा कि जितनी जल्दी पैथोलॉजी जांच होगी, मरीज का इलाज भी उतनी जल्दी ही शुरू किया जा सकता है। मीटिंग में सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. मंजू सिंह, डॉ. ओपी सुंदरानी, डॉ. आरएल खरे, डॉ. वर्षा मुंगुटवार, डॉ. एसके चंद्रवंशी, डॉ. दिवाकर धुरंधर, डॉ. अंजुम खान समेत अन्य फैकल्टी उपस्थित थे।