यह भी पढ़ें :
दिनदहाड़े युवक पर चलाया तलवार, जख्मी हाल में किया ऐसा कांड, सब्जी बाजार में मचा हड़कंप महिलाओं ने रविवार की देर रात करु भात खाकर इस कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत की। परिवार के लोग भी व्रतियों के साथ जागरण करते रहे। पंडितों के अनुसार तृतीयायुक्त चतुर्थी होने से माताएं और बहनों ने चार पहर के पूजन विधान में अलग-अलग समय में कथा सुनने और पूजा कराने के लिए आमंत्रित किया। दोपहर 12 से 4 बजे तक, शाम को 6 से रात 12 बजे और भोर 3 से सुबह 6 बजे तक पूजा-अर्चना करने में लीन नजर आईं। नए परिधान और सोलह शृंगार कर विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां विराजकर पूजा, भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा किया।
यह भी पढ़ें :
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना : शिल्पकारों को मिली बड़ी सौगात, ऐसे मिलेंगे 2 लाख रुपए, जानिए डिटेल्स… बसंत विहार कॉलोनी में किया सामूहिक पूजन बसंत विहार कॉलोनी स्थित कैलाश गौरी शिव मंदिर में सुबह से लेकर देर रात तक महिलाओं ने पूजन किया। दिनभर निर्जला व्रत रहकर शिव परिवार का सामूहिक पूजन शिव-गौरी से अखंड सौभाग्य की मंगलकामना की। ऐसा ही माहौल शहर में सभी जगह रहा। इस अवसर पर कॉलोनी की महिलाएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहीं। मंगलवार को पूजन के बाद पारण करेंगी। छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका माना जाता है। छत्तीसगढ़ में तीजा मनाने की भी परंपरा है। मायका होने की वजह से माता कौशल्या को इस वर्ष पहली बार तीजा मनाने अयोध्या से चंदखुरी लाया गया।
यह भी पढ़ें :
छत्तीसगढ़ी परंपरा.. किसान इस वजह से मां अन्नपूर्णा को लगाते हैं चीला का भोग, विधि-विधान से करते है पूजा लोक कलाकार राकेश तिवारी का कहना है कि बचपन से ही वे माता कौशल्या का मायके के रूप में छत्तीसगढ़ को सुनते आ रहे हैं। पुराणों में भी कोशल प्रदेश के रूप में छत्तीसगढ़ का उल्लेख है। उनका मानना है कि साल में एक बार माता कौशल्या को तीजा मनाने अपनी बेटी के रूप में बुलाया जा सकता है। इसी को साकार करते हुए उन्होंने माता कौशल्या को भगवान श्रीराम के बाल रूप सहित चंदखुरी में पांडवानी गायिका प्रभा यादव के निवास पर स्थापित किया।
यह भी पढ़ें :
CG Election 2023 : राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा रद्द, सीएम बघेल ने बताई ये बात… राजा दशरथ से अनुमति लेकर लाए मिट्टी तीजा पर्व को लेकर परंपरा है कि बेटी को तीजा लाने जाने वाला सदस्य पहले उसके ससुराल वालों से अनुमति लेता है, फिर एक रात बेटी के ससुराल में रूककर बेटी को साथ लेकर आता है। इसी के अनुरूप अगस्त में लोक कलाकार डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर और नरेंद्र यादव रायपुर से अयोध्या गए। रायपुर से रवाना होते वक्त प्रभा यादव ने उन्हें अंगाकर रोटी भी दिया। इस रोटी को परंपरा के अनुरूप रास्ते में खाना होता है।
यह भी पढ़ें :
दंतेवाड़ा में हादसा… यात्रियों से भरी पिकअप पलटी, 20 लोग हुए घायल, 4 की हालत गंभीर रायपुर से अयोध्या के बीच के सफर में दोनों कलाकारों ने अंगाकर रोभी खाया। शाम को अयोध्या पहुंचने के बाद राजा दशरथ से माता कौशल्या को तीजा ले जाने की अनुमति मांगी। अगले दिन सरयू स्नान के बाद राजा दशरथ के महल से महंत ने मंत्रोच्चार के साथ मिट्टी निकालकर दी। मूर्ति कलाकार पीलू राम ने अयोध्या की मिट्टी से माता कौशल्या की मूर्ति बनाकर नि:शुल्क उपलब्ध कराई, जिसमें माता कौशल्या के गोद में भगवान श्रीरामचंद्र विराजे हुए हैं।
बच्चों ने भगवान श्रीराम का किया मनोरंजन तीजा मनाने मामा गांव आए भगवान श्रीरामचंद्र का गांव के बच्चों ने बैल दौड़ाकर, जांता-पोरा दिखाकर उनका मनोरंजन किया। इस दौरान आस-पास के बच्चे माता कौशल्या और भगवान श्रीरामचंद्र के सामने खेलों का प्रदर्शन करते रहे।
5 दिनों तक चला तीजा महोत्सव तीजा मनाने मायके आईं माता कौशल्या की प्रतिमा स्थापना 15 सितंबर को की गई। इस दौरान 8 साल की उम्र से चंदखुरी के माता कौशल्या मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे स्थानीय पुजारी पं. संतोष चौबे ने 15 से 19 सितंबर तक पूजा-अर्चना की। 19 सितंबर को दोपहर में प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।