शानिवर को 73 वें स्वतंत्रता दिवस पर पिछले नक्सलियों ने अपने पकड़ वाले करीब 400 गांवों में काला झंडा नही फहराया. वहीं दूसरी ओर पुलिस अधिकारी इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में भी देख रहें हैं. माओवाद विरोधी ऑपरेशन्स में तैनात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि यह विगत कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों और राज्य सरकार द्वारा ग्रामीणों का भरोसा जीतने की लगातार कोशिश का परिणाम है. इसके साथ ही केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस द्वारा माओवादियों के खिलाफ लगातार कड़ी कार्रवाई और मानवाधिकार हनन की घटनाओं में आई कमी ने भी नक्सलियों को रक्षात्मक तरीका अपनाने को मजबूर कर दिया है.
माओवाद विरोधी अभियान के प्रमुख और बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने बताया, ‘विगत कुछ सालों से नक्सलियों द्वारा काले झंडे फहराने की घटनाएं कम हो रही थीं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि इस स्वतंत्रता दिवस में नक्सलियों द्वारा काला झंडा फहराने की कोई घटना सामने नही आई. साथ ही स्थानीय ग्रामीणों में स्वतंत्रता दिवस के प्रति अभूतपूर्व उत्साह भी दिखा. यह एक बहुत ही सकारात्मक बदलाव है जो स्थानीय प्रशासन, सुरक्षा बलों और ग्रामीणों के बीच बढ़ते विश्वास को दर्शाता है.’
छत्तीसगढ़ में कब हुई नक्सलवाद की शुरुआत?
छत्तीसगढ़ शुरुआत से ही नक्सल प्रभावित समीपवर्ती भौगोलिक क्षेत्रों से घिरा है. छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की शुरूआत समीपवर्ती राज्य आन्ध्रप्रदेश की सीमा से लगे बस्तर से हुई है. 1960 के दशक में बस्तर में कुछ असमाजिक तत्वों का प्रवेश भोपालपटनम क्षेत्र से हुआ. 1967-68 में इन असामाजिक तत्वों की गतिविधियों ने छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का रूप ले लिया.
5 नक्सलियों ने समर्पण
सुकमा जिले में 5 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. राज्य सरकार द्वारा नक्सल उन्मूलन अभियान के तहत पुनर्वास योजना के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर इन नक्सलियों ने डीआईजी सीआरपीएफ व एसपी शलभ सिन्हा के सामने सरेंडर किया. इनमें 8 लाख का इनामी नक्सली बोड्डू वेंकेटेश भी शामिल है.
सरेंडर करने वाले नक्सलियों में 8 लाख, 5 लाख और 1 लाख के नक्सली शामिल हैं. इन नक्सलियों पर आईईडी ब्लास्ट, हत्या, पुलिस पेट्रोलिंग पार्टी पर फायरिंग, लूट, आगजनी और रोड खोदने जैसे अपराध दर्ज हैं. इतना ही नहीं ताड़मेटला घटना जिसमें 76 जवान शहीद हुए थे, उसमें 8 लाख का इनामी नक्सली बोड्डू वेंकेटेश का भी हाथ था.
वहीं दूसरी तरफ दंतेवाड़ा के मरजुम गांव में जहां हर साल नक्सली काला झंडा फहराया जाता था, वहीं आज आजादी के बाद पहली बार तिरंगा फहराया गया है. नक्सल गढ़ माने जाने वाले मरजुम में पहली बार स्वतंत्रता दिवस पर भारी उत्साह के साथ लोग झंडा फहराने पहुंचे.