CG Hospital News: निजी अस्पतालों ने आयुष्मान योजना को बना डाला ATM कार्ड, डॉक्टर नहीं फिर भी हो रहा इलाज..
CG Hospital News: रायपुर व कस्बाई इलाकों के कुछ निजी अस्पतालों ने आयुष्मान भारत यानी शहीद वीर नारायण सिंह स्वास्थ्य योजना को मानो एटीएम कार्ड समझ लिया है।
CG Hospital News: पीलूराम साहू. छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर व कस्बाई इलाकों के कुछ निजी अस्पतालों ने आयुष्मान भारत यानी शहीद वीर नारायण सिंह स्वास्थ्य योजना को मानो एटीएम कार्ड समझ लिया है। योजना के तहत ऐसी मनमानी सामने आ रही है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
CG Hospital News: जैसे अस्पताल में सुविधा न होते हुए भी बड़े पैकेज ब्लॉक करना, गैरजरूरी तरीके से अधिक राशि वाले पैकेज क्लेम करना, ओपीडी के मरीज को भर्ती दिखाकर पैकेज ब्लॉक करना। ये तो केवल उदाहरण है। पैसे कमाने के लिए ये कुछ निजी अस्पताल ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं, जिससे स्टेट नोडल एजेंसी (एसएनए) के अधिकारी भी भौंचक है। यानी अस्पताल ऐसा भी कर सकते हैं, ऐसा अधिकारी सोच भी नहीं सकते। योजना से पिछले साल 2153 करोड़ रुपए का इलाज हुआ।
CG Hospital News: 6 निजी अस्पतालों का पंजीयन किया था निरस्त
CG Hospital News: एसएनए ने शुक्रवार को 6 निजी अस्पतालों को आयुष्मान भारत योजना का पंजीयन निरस्त किया था। सिटी 24 अस्पताल रायपुर, उम्मीद केयर अस्पताल सिवनी बालोद, जय पतई माता अस्पताल पटेवा, स्व. विद्याभूषण ठाकुर मेमोरियल अस्पताल राजनांदगांव, सांई नमन अस्पताल महासमुंद व वेगस अस्पताल बिलासपुर को कई शिकायतों के बाद योजना से बाहर किया गया है।
पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि ये अस्पताल छोटे किस्म के हैं। यानी एक या दो डॉक्टरों से अस्पताल चल रहे हैं, लेकिन पैकेज ऐसे-ऐसे ब्लॉक किए जा रहे हैं, जैसे कोई मल्टी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल हो। कुछ अस्पतालों में सीजेरियन डिलीवरी हो या नार्मल, बच्चों को एनआईसीयू में भर्ती दिखाकर पैकेज ब्लॉक किया जा रहा था।
जबकि एनआईसीयू के लिए पीडियाट्रिशियन, वार्मर, वेंटीलेटर समेत जरूरी सुविधाओं की जरूरत होती है। यही नहीं सीजेरियन डिलीवरी के बाद, जहां महिला भर्ती है, वहां पर एक्सीडेंट में घायल मरीजों को भर्ती किया जाता है। अस्पताल तो निजी है, लेकिन एंबुलेंस से सरकारी अस्पताल में वैक्सीन लगाने के लिए ले जाया जाता है।
बाइक से गिरने पर सिर में लगी थी गंभीर चोट, पैकेज ही खत्म
बाइक से गिरने पर व्यक्ति के सिर में गंभीर चोट लगी थी। बालोद के एक छोटे अस्पताल में व्यक्ति को भर्ती किया गया। इलाज में आयुष्मान कार्ड का पूरा पैकेज खत्म हो गया। यही नहीं स्टेट नोडल एजेंसी के अधिकारियों से आग्रह कर टॉपअप भी कराना पड़ा। यह राशि भी खत्म हो गई और अंतत: मरीज की मौत हो गई। सवाल उठता है, छोटे से इस अस्पताल में न्यूरो सर्जन ही नहीं था। जबकि मरीज के इलाज के लिए उनकी जरूरत थी। यही नहीं मरीज को मैनेज करने के लिए क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट तो थे, लेकिन गेस्ट के बतौर। मरीज का बेहतर इलाज नहीं हुआ और जान चली गई।
एक कस्बाई अस्पताल में आईसीयू में मरीजों को भर्ती कर इलाज किया जाता है। पत्रिका की पड़ताल में पता चला कि आईसीयू के नाम पर कमरे में परदे लगे थे और पंखे चल रहे थे। न मॉनीटर था और न जरूरी सुविधाएं। यहां तक अस्पताल में एक भी वेंटीलेटर नहीं है, लेकिन अस्पताल हर साल सैकड़ों पैकेज आईसीयू का ब्लॉक करता है। अस्पताल का संचालन शहर के एक नामी जनरल फिजिशियन करते हैं, जो अपने आपको हार्ट रोग व डायबिटीज रोग विशेषज्ञ बताते हैं। इस अस्पताल की अलग ही तूती बोलती है। अस्पताल चाहे तो योजना से इलाज न करें और मरीजों से नकद लें।
नर्सिंग होम एक्ट के तहत पंजीयन के निरीक्षण के दौरान आंखें बंद
नर्सिंग होम एक्ट व आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojana) के तहत पंजीयन के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अस्पतालों का निरीक्षण करते हैं। संतुष्ट होने पर ही अस्पताल का पंजीयन किया जाता है और योजना के तहत मान्यता दी जाती है। जब अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर व सुविधा ही नहीं है तो एसएनए ऐसे अस्पतालों पर लगाम क्यों नहीं कसती? क्यों शिकायतों का इंतजार किया जाता है? मतलब साफ है कि निरीक्षण के दौरान अधिकारी आंखें बंद करके रखते हैं और लेन-देन कर अस्पतालों को मान्यता दे देते हैं। ऐसा आरोप पहले लगता रहा है।