मंगली की पदचाप सुनकर झोपड़ी के अंदर से उसकी दस वर्षीय बेटी लक्ष्मी बाहर निकली। उसने देखा कि मिट्टी के जलते हुये दियों को उसकी माॅ प्रश्नवाचक भाव से घूरते देख रही है। इसे देखकर लक्ष्मी उल्लास भरे स्वर में बोल पड़ी़- माॅ, आज से तीन दिवसीय रौशनी का पर्व दीपावली की शुरूआत हो रही है। हमारे मास्टर जी ने बताया है कि अंधेरे से ऊजाले की ओर जाने का संदेश दीपावली का पर्व देता है। अन्याय के विरूद्ध न्याय की विजय को प्रदर्शित करने घर घर में रौशनी की जाती है। इसलिये मैंने भी मिट्टी के दिये जलाए हैं। अच्छा लग रहा है न माॅ?
लक्ष्मी की बात सुनने के उपरांत मंगली अनाज की बोरी सिर उतारते हुए पूछ पड़ी- इतने सारे दिए जलाने के लिये तूझे तेल कहां से मिला ? प्रत्युत्तर में लक्ष्मी बोली- वाह माॅ भूल गई ।कल ही तो तुमने साग छोंकने के लिये मुझसे एक पाव तेल मंगवाई थी और ….
लक्ष्मी की बात पूरी होने के पहले ही मंगली का हाथ उठा और लक्ष्मी के सुकोमल गालों पर तड़ाक तड़ाक की आवाज के साथ अंगुलियों की छाप छोड़ गया। वह ऊॅची आवाज में लक्ष्मी को डांटते हुये बोली- कलमुंही अब साग क्या तेरे लहू से छोकूंगी ? चल झटपट बुझा इन दियों को।
माॅ के विकराल रूप को देखकर लक्ष्मी सहम गई। अंधेरे से ऊजाले के बजाय, ऊजाले से अंधकार में डूबती मासूम लक्ष्मी सुबकते हुये एक-एक दिए को फूंक मार मार कर बुझाती जा रही थी। एक निर्धन परिवार में दीपावली का मर्म तलाशते हुए वहां स्वतंत्र आलोकित दिए दर्द में तिलमिलाते हुए बूझते चले जा रहे थे।
विजय मिश्रा‘अमित’
एम 8 सेक्टर 2 अग्रोहा सोसायटी, पोआ सुंदर नगर रायपुर (छग)