शुरुआत के तीन चुनाव में ऐसा रहा ट्रेंड 8 में से 6 सीटनिर्दलीय के पास 1951 आजादी के बाद पहला चुनाव 1951 को हुआ था। इस समय में बस्तर संभाग की 8 सीटें थीं। इनमें से 6 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता था। बीजापुर और नारायणपुर की सीट कांग्रेस के कब्जे में आईं थीं। जबकि राजनांदगांव की पांच सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था।
सभी सीटों पर कांग्रेस काबिज 1957 दूसरे चुनाव में फिजा बदली और कांग्रेस सभी आठ सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही। राजनांदगांव क्षेत्र की सात में से छह विधानसभा सीट पर कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रही। वहीं राजनांदगांव विधानसभा में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता था।
बदला बस्तर का समीकरण 1962 तीसरे चुनाव में बस्तर का समीकरण बदल गया। यहां विधानसभा की 10 सीटें हुई। चुनाव में केवल एक सीट बीजापुर में कांग्रेस का उम्मीदवार चुनाव जीता। बाकी जगह निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज कराई। राजनांदगांव की 5 में 4 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हुआ।
अंतिम तीन चुनाव में ऐसा रहा ट्रेंड 11 सीट पर भाजपा का कब्जा 2008 बस्तर संभाग में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा। 12 में से 11 सीटों पर भाजपा ने चुनाव जीता। कोंटा की केवल एक विधानसभा सीट से कवासी लखमा चुनाव जीतकर आए। वहीं राजनांदगांव की आठ सीटों में 5 भाजपा और 3 सीट पर कांग्रेस चुनाव जीतने में सफल रही।
भाजपा को नुकसान, कांग्रेस फायदे में 2013 इस चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ। 12 में से 4 सीटों पर ही चुनाव जीत सकी। कांग्रेस ने 8 सीटों पर विजय हासिल की। वहीं राजनांदगांव क्षेत्र की 8 सीटों पर बराबरी का मुकाबला हुआ। 4 कांग्रेस और 4 सीट भाजपा ने जीती।
कांग्रेस की झोली भरी 2018 इस चुनाव में भाजपा बस्तर संभाग में केवल एक विधानसभा सीट जीत सकी। दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी की मौत के बाद उपचुनाव में यह सीट भी कांग्रेस के खाते में आ गई। पहली बार भाजपा पूरी तरह साफ हो गई। राजनांदगांव क्षेत्र की आठ सीट में से केवल एक सीट पर चुनाव जीत सकी।
फिर भी कोई सीएम नहीं बना
राजनीति के जानकार बस्तर को सत्ता की चाबी बताते हैं। माना जाता है कि बस्तर संभाग की सीटों का असर सरगुजा में भी होता है। इसके बावजूद आज तक बस्तर संभाग से कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बना है। इस बार जरुर सरगुजा संभाग को थोड़ा महत्व मिला और आखिरी समय में टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाया गया। बता दें कि प्रदेश में आदिवासियों को मुख्यमंत्री की मांग हमेशा उठती रही है। यही वजह है कि कांग्रेस दिवंगत अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि उनकी जाति को लेकर हमेशा विवाद रहा है।
आदिवासियों की एकजुटता ही ताकत माना जाता है आदिवासी मतदाता एकजुट होकर वोट करते हैं, जिसका असर पूरे राज्य में दिखाई देता है। ज्यादातर मामलों में बस्त्र में जिस पार्टी को ज्यादा सीट मिली, उसकी सरकार बनी है। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए बस्तर बेहद अहम है। दोनों दल इस इलाके में चुनावों के एक साल पहले से ही पूरा जोर लगा रहे हैं।