2. ऐन चुनाव के पहले अंतागढ़ टेप कांड में हुए बड़े खुलासों ने भी दंतेवाड़ा उपचुनाव में भाजपा की स्थिति कमजोर की।
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3. विधानसभा में करारी हार के बाद से भाजपा संगठन बिखरी हुई है ,जबकि कांग्रेस में अंतर्कलह ख़त्म हो गया और पार्टी में शीर्ष से लेकर जमीनी स्तर तक में एकजुटता दिखी।4. प्रचार – प्रसार के मामले में कांग्रेस ने भाजपा को कहीं पीछे छोड़ दिया था। मुख्यमंत्री के अलावा वरिष्ठ अन्य कांग्रेसी प्रचार के दौरान दंतेवाड़ा में सक्रिय नज़र आए।
दंतेवाड़ा उपचुनाव रिजल्ट: कांग्रेस की देवती कर्मा ने भाजपा की ओजस्वी मंडावी को 11 हजार मतों से हराया
5. दंतेवाड़ा के ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं ने ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया।6. दंतेवाड़ा उपचुनाव में भाजपा संगठन की तरफ से नेतृत्व का अभाव उभर कर सामने आया।वहीँ पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सक्रियता दिखाने का प्रयास किया लेकिन अन्य भाजपाइयों को यह नहीं भाया और उन्होंने इसे नकार दिया।
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7. उम्मीद थी कि आदिवासी बाहुल क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट पर भाजपा के आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी कुछ कमाल करेंगे लेकिन वे भाजपा को जनाधार दिलाने में असफल रहें।8. जिस तरह 2013 के विधानसभा चुनाव में झीरम घाटी हादसे को भुनाने में कांग्रेस असफल रही थी उसी तरह दंतेवाड़ा उपचुनाव में भीमा मंडावी के नक्सलियों द्वारा हत्या को भाजपा सहानुभूति लहर में नहीं बदल पाई।
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9. कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा कि तुलना में भाजपा की उम्मीदवार ओजस्वी मंडावी कमजोर साबित हुई, भाजपा संगठन के कई नेताओं ने भी स्वीकारा कि ओजस्वी की जगह किसी और को प्रबल दावेदार बनाना था।10. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के हित में कुछ ऐसे फैसले लिए जिसका परिणाम दंतेवाड़ा उपचुनाव में पार्टी को बड़े जनाधार के रूप में परिलक्षित हुआ।